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आ. तस्दीक अहमद साहब,
अच्छी ग़ज़ल हुई है ..
दो मिसरों में तनाफुर का ऐब नुमायाँ है ..
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जिसको तदबीर पर यक़ीन नहीं
जिन को तदबीर पर नहीं है यकीं ...
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वक़्त तस्दीक़ इम्तहान का है
वक़्त है इम्तहान का तस्दीक़
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कियामत को क़ियामत कर लें ... सादर
आदरणीय तस्दीक साहिब इस दिलकश ग़ज़ल के लिए दिल से मुबारकबाद कबूल फरमाएं सर।
आ. भाई तस्दीक अहमद जी , इस सुंदर गजल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें।
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