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ग़ज़ल...कई शम्स उसने सँभाले हुये हैं

122 122 122 122
कई शम्स उसने सँभाले हुये हैं
वो जिसके करम से उजाले हुये हैं

चला जो सदा सत्य की लौ जलाये
उसी शख्स के पांव छाले हुये हैं

ये जिनकी तपिश से जले आशियाने
वो मुददे नहीं बस उछाले हुये हैं

कहीं दूध मेवा कहीं आदमी को
बमुश्किल मयस्सर निवाले हुये हैं

विसाले सनम के हसीं ख्वाब दिल से
कई साल पहले निकाले हुये हैं
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 7, 2017 at 3:44pm
आदरणीय बसंत कुमार शर्मा जी रचना पटल पे आपका हार्दिक स्वागत है..सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 7, 2017 at 3:43pm
आदरणीय समर कबीर जी आपकी उपस्थिति सदैव उत्साहवर्धक होती है..आपका हार्दिक अभिनन्दन वंदन..सादर
Comment by बसंत कुमार शर्मा on May 7, 2017 at 9:52am

बहुत बढ़िया 

Comment by Samar kabeer on May 6, 2017 at 9:49pm
जनाब बृजेश कुमार'ब्रज'साहिब आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है ,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 5, 2017 at 11:47pm
सभी बड़ों से एक प्रार्थना है..बहुत छोटा हूँ मैं अभी हर मायने में कृपया आदरणीय जैसे भारी शब्द से सम्बोधन न दें..सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 5, 2017 at 9:18pm
आ अनुराग जी आपकी हौसलाफजाई के लिए आपका हार्दिक अभिनन्दन वंदन करता हूँ सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 5, 2017 at 9:10pm
आदरणीय गिरिराज जी आपकी उपस्थिति से अतिप्रसन्ता का अनुभव हुआ..आपकी और आदरणीय नीलेश जी की बात से सहमति व्यक्त करता हूँ और अच्छे से अच्छा करने की कोशिश करूँगा सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 5, 2017 at 8:58pm
आदरणीय डा.मिश्रा जी सुन्दर शब्दों में उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक अभिनन्दन वंदन करता हूँ सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 5, 2017 at 8:57pm
आ नीलेश जी रचना पटल पे आपकी उपाथिति सदैव उत्साहवर्धक होती है सादर आभार व्यक्त करता हूँ..जी आदरणीय आपके कथन से पूर्णतया इत्तफ़ाक़ रखता हूँ..तीसरा शेर अच्छा है लेकिन उसे और बेहतर किया जा सकता है..कोशिश कर रहा हूँ कुछ अच्छा कर सकूँ सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 5, 2017 at 8:53pm
आ. सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी मुक्त कंठ से रचना की सराहना के लिए आपका ह्र्दयतल से आभार..सादर

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