For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तरही गजल : फूल जंगल में खिले किन के लिये

2122 2122 212

कार्ड काफी था न लॉगिन के लिए
वो हमे भी ले गए पिन के लिए

चाँद पर जाकर शहद वो खा रहे
आप अब भी रो रहे जिन के लिए

शेर को आता है बस करना शिकार
फूल जंगल में खिले किन के लिए

गुठलियों के दाम भी वो ले गया
उसने शीरीं आम जब गिन के लिये

आ गई अब ब्रेड में बीमारियाँ
जी रहे थे क्या इसी दिन के लिए

आये थे जापान से कल लौट कर
फिर उड़े वो रूस बर्लिन के लिए

पास पप्पू एक दिन हो जाएगा
है दुआ इस गैर मुमकिन के लिए

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 1287

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on June 24, 2017 at 11:21am

इस खूबसूरत गज़ल के लिए मुबारकबाद।

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on May 15, 2017 at 6:32pm
आदरणीय रवि शुक्ल सर,उम्दा अशआर हुए हैं ,हार्दिक बधाई स्वीकारें!
Comment by Mahendra Kumar on May 15, 2017 at 12:14pm

आदरणीय रवि सर, बहुत दूर तक मार कर रही है आपकी ग़ज़ल. अलहदा काफियों से सजी इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on May 11, 2017 at 10:42pm

मुहतरम जनाब रवि साहिब, खूबसूरत ग़ज़ल हुई है दाद के साथ
मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ -------शेर 2 में तक़ाबुले -रदिफेन हो गया
'' खा रहे वो चाँद पर जाकर शहद ''------सादर

Comment by Ravi Shukla on May 11, 2017 at 6:06pm

आदरणीय आशुतोष जी आपकी उत्‍साह बढाती इस टिप्‍पणी से बहुत खुशी हुई आपका बहुत बहुत धन्‍यवाद साथ ही ओ बी ओ का भी कि उसके माध्‍यम से प्राप्‍त ज्ञान से हम भीकुछ कहने में सक्षम हुए जिसे आप सब ने पहचाना और सराहना की । सादर

Comment by Ravi Shukla on May 11, 2017 at 6:04pm

आदरणीय शिज्‍जु भाई आपकी सराहना प्रफुल्लित कर देती है बहुत बहुत आभार

Comment by Ravi Shukla on May 11, 2017 at 6:03pm

आदरणीय समर साहब आपका आग्रह आदेश है इसीलिय बडों की बात मानकर मंच की प्रति में भी सुधार कर लिया है । आभार

Comment by Ravi Shukla on May 11, 2017 at 6:02pm

आदरणीय सुशील जी आपका बहुत बहुत धन्‍यवाद गजल पसंद आई आपको  आप जैसे सजग पाठक का ह्रदय से स्‍वागत है आप सभी रचनाओ पर उपस्थित होते है और अपनी टिप्‍पणियों से हौसला बढ़ाते है जबकि हम अतुकांत कविताओ पर अपने अज्ञान के कारण आपकी रचनाआें पर उपस्‍ि‍थति दर्ज करने में संकोच करते है आशा है आप इसे अन्‍यथा न लेते हुए अपना स्‍नेह ऐसे ही बनाए रखेंगे । सादर

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 9, 2017 at 7:04pm
आदरणीय रवि सर मस्त मस्त ग़ज़ल हुयी है आपका ये अनोखा अंदाज़ है अखबार बाली ग़ज़ल बरबस याद आ गयी आपको ढेर सारी बधाई सादर
Comment by Samar kabeer on May 9, 2017 at 6:07pm
मेरे कहे को मान देने के लिये धन्यवाद ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"मुस्काए दोस्त हम सुकून आली संस्कार आज फिर दिखा गाली   वाहहह क्या खूब  ग़ज़ल '…"
8 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
Wednesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
Wednesday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
Tuesday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service