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गजल(जब हवा बदली हुई है)

2122 2122
जब हवा बदली हुई है
साँस उनकी क्यूँ थमी है?1

अश्क के थे रश्कजादे
अब नजर में क्यूँ नमी है?2

क्या हुआ अबतक पता सब
ढूँढ़ ली जाती कमी है।3

ओहदे सेवा की' सूरत
शोहदों का सच यही है।4

आसमां भर तार माफिक
आरजू होती रही है।5

जो किया जाता रहा तब
लग रहा था सच वही है।6

जो सँजोये धन चुराकर
खुल रही उनकी बही है।7
@मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Mahendra Kumar on April 2, 2017 at 10:07pm
आदरणीय मनन जी, बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने। हार्दिक बधाई प्रेषित है। सादर।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 31, 2017 at 8:40pm
वाह आदरणीय छोटी बहर में शानदार खूबसूरती निखर के आई है..
Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on March 30, 2017 at 11:28am
आ0मनन कुमार सिंह जी बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
Comment by Manan Kumar singh on March 29, 2017 at 8:30pm
आदरणीय सुरेन्द्र जी सादर नमन!स्नेह-सुधा से तृप्त हूँ।
Comment by Manan Kumar singh on March 29, 2017 at 8:30pm
आदरणीय सुरेन्द्र जी सादर नमन!स्नेह-सुधा से तृप्त हूँ।
Comment by Manan Kumar singh on March 29, 2017 at 8:30pm
आदरणीय सुरेन्द्र जी सादर नमन!स्नेह-सुधा से तृप्त हूँ।
Comment by Manan Kumar singh on March 29, 2017 at 8:30pm
आदरणीय सुरेन्द्र जी सादर नमन!स्नेह-सुधा से तृप्त हूँ।
Comment by Manan Kumar singh on March 29, 2017 at 8:28pm
आदरणीय सुरेन्द्र जी सादर नमन!स्नेह-सुधा से तृप्त हूँ।
Comment by Manan Kumar singh on March 29, 2017 at 8:28pm
आदरणीय सुरेन्द्र जी सादर नमन!स्नेह-सुधा से तृप्त हूँ।
Comment by Manan Kumar singh on March 29, 2017 at 8:26pm
मोहतरम समर जी आ दा ब व शुक्रिया आ प का।

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