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गजल(दूर कहीं से कौड़ी आई)

22 22 22 22
दूर कहीं से कौड़ी आई-
आओ साथ बनाओ भाई।1

बाल बचे जो मुड़ जायें मत
डरता रहता टकलू नाई।2

जीत दिलाने में पिछड़ी हैं
बरबोलों की माई-जाई।3

सहमी जातीं समता-ममता
माया ने सब नाच नचाई।4

खेत चरे क्यूँ बतलायेंगे
चिल्लाते सब 'राम दुहाई'।5

माथा पीट रहे मुँहझौंसे
निज करनी ने लंका ढ़ाई।6

योग लगन ग्रह वार जुटे सब
किसको किसकी बाजी भाई?7
@मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Mahendra Kumar on April 2, 2017 at 7:09pm
आदरणीय मनन जी, इस बढ़िया ग़ज़ल के लिए ढेर सारी बधाई स्वीकार कीजिए। सादर।
Comment by नाथ सोनांचली on March 29, 2017 at 7:25am
आद0 मनन जी सादर अभिवादन, ग़ज़ल के लिए बधाई, यह गजल आपके और ग़ज़ल से हटकर है,
Comment by Manan Kumar singh on March 28, 2017 at 7:33pm
आदरणीय समर जी, आभार व नमन!परिमार्जित करता हूँ।
Comment by Manan Kumar singh on March 28, 2017 at 7:32pm
आदरणीय समर जी, आभार व नमन!परिमार्जित करता हूँ।
Comment by Samar kabeer on March 28, 2017 at 6:37pm
जनाब मनन कुमार सिंह जी आदाब,ग़ज़ल अच्छी है,बधाई स्वीकार करें ।
किसी व्यक्ति विशेष का नाम लेकर कुछ कहना हमारे मंच की परम्परा के ख़िलाफ़ है, कृपा कर आख़री शैर ग़ज़ल से ख़ारिज कर दें ।

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