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ग़ज़ल - सबको ख़्वाबो से प्यार हो जाये

बह्र  2122  1212    22

सबको ख़्वाबों से प्यार हो जाये
तो ख़ज़ां भी बहार हो जाये ||

ये सियासत की आरजू है क्यूँ
देश यू पी बिहार हो जाये ||

गर लगे घर में बाहरी दीमक
टूटकर कुनबा ख़्वार हो जाये ||

यूँ न हो राजनीति में फ़ँस कर
अपने घर में दरार हो जाये ||

तेरे किरदार से न तेरी माँ
ऐके दिन शर्मसार हो जाये ||

जख्म को मत कुरेदो अब यारो
राख फिर से अँगार हो जाये ||

ज़ीस्त मतलब बदल न दे अपना
गर दराज़ इन्तिज़ार हो जाये ||

'नाथ' से दोस्ती करो खुलकर
ज़िन्दगी खुशगवार हो जाये ||

(मौलिक व् अप्रत्याशित)

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Comment by नाथ सोनांचली on January 9, 2017 at 3:32am
आदरणीय आशुतोष जी गजल में गहराई से शिरकत करने और आशीर्वाद देने के लिये आभार, सादर
Comment by नाथ सोनांचली on January 9, 2017 at 3:32am
आदरणीय आशुतोष जी गजल में गहराई से शिरकत करने और आशीर्वाद देने के लिये आभार, सादर

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Comment by मिथिलेश वामनकर on January 8, 2017 at 9:15pm

आदरणीय सुरेन्द्र जी, बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने. इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई. इस शेर पर ध्यान चाहूंगा-

जख्म को मत कुरेदो अब यारों................ यारों को यारो कर लीजिये 
राख फिर से अँगार हो जाये।।.................. इस ग़ज़ल में क्या अंगार काफ़िया हो सकता है?

सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 8, 2017 at 10:40am
आदरणीय भाई सुरेन्द्रजी रचना पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें यू पी केवर्तमानघटनाक्रम पर बहुत फिट है आपकी ये रचना तेरे किरदार,,,ऐके सादर

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