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सीनियर अफसर के साथ हुई बातचीत अभी भी उसके कॉकपिट में गूँज रही थी। "तुम्हें बम उन पहाड़ियों के बीच स्थित दुश्मन के अड्डे पर गिराना है।"

और देशवासियों की भी। "उन पापियों का नामोनिशान मिटा दो!"

अजय बचपन से ही वायुसैनिक बनना चाहता था और इलिशा एक शिक्षिका। साथ पढ़ते-पढ़ते दोनों कब एक दूसरे के प्यार में डूब गए उन्हें पता ही नहीं चला। "तुम हमेशा मुझे ऐसे ही चाहोगे?"

"हाँ।" अजय ने इलिशा को गले लगाते हुए कहा।

पर होनी को कुछ और ही मंज़ूर था। इलिशा अपने घर वालों के ख़िलाफ़ नहीं जा पायी। उसकी शादी सरहद के दूसरी तरफ किसी और से हो गयी, पहाड़ियों के बीच स्थित उसी गाँव में जहाँ अजय को आज बम गिराने का निर्देश मिला था।

"जब भी मेरी याद आये, चाँद देख लेना। तुम यहाँ से देखना और मैं वहाँ से, रोज रात दस बजे। इस तरह हम हमेशा साथ रहेंगे।" बिछड़ते वक़्त इलिशा ने रूंधे गले से कहा।

पहाड़ी नज़दीक थी। जैसे-जैसे वह उसके पास पहुँच रहा था वक़्त की रफ़्तार ठहर रही थी। थोड़ी ही देर में वह बिलकुल उसी जगह पर था जहाँ उसे होने का निर्देश दिया गया था। घड़ी में ठीक दस बजे थे। उसके हाथ बम गिराने के लिए आगे बढ़े। उसने एक बार आसमान की तरफ देखा। चाँद बादलों के बीच छुपने की कोशिश कर रहा था। और फिर नीचे की तरफ। जलती लाशों के बीच काँपता हुआ एक गुलाब चाँद को देख रहा था। उसने बम गिरा दिया।

इसके बाद उसने अपने जहाज की गति बढ़ा दी और वहाँ से दूर एक निर्जन पहाड़ी में ले जा कर उसे क्रैश कर दिया।

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on January 2, 2017 at 11:05pm
आदरणीय धन्यवाद ।
Comment by Mahendra Kumar on January 2, 2017 at 10:52pm
आदरणीय योगराज सर को किये गए मेरे पिछले कमेण्ट में भूल से "आदरणीय" की जगह "आदरणीया" हो गया है। मैं इसके लिए हृदय से क्षमाप्रार्थी हूँ। सादर।
Comment by Mahendra Kumar on January 2, 2017 at 9:14pm
आदरणीया कल्पना जी, रचना अच्छी लगी, आपका हार्दिक आभार। यदि आप इस कहानी में किन्हीं दो दुश्मन देशों को रखेंगी तो बात स्पष्ट हो जाएगी जैसे भारत-पाक। क्या भारत से पाक में शादियाँ नहीं होतीं? उम्मीद है बात स्पष्ट हुई होगी। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। सादर।
Comment by Mahendra Kumar on January 2, 2017 at 9:11pm
आदरणीय समर कबीर सर, आदाब। लघुकथा को पसंद करने के लिए आपका हृदय से आभार। बहुत-बहुत धन्यवाद। सादर।
Comment by Mahendra Kumar on January 2, 2017 at 9:09pm
आदरणीया योगराज सर, दरअसल गलती मुझसे ही हो गयी। मैंने पहले संवाद में "दुश्मन देश के अड्डे" की जगह //दुश्मन के अड्डे// लिख दिया पर ज़हन में "दुश्मन देश" ही था। इसलिए मुझे लगा बात स्पष्ट थी। आपके इन दोनों सुझावों और त्वरित स्पष्टीकरण के लिए मैं आपका हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ। आपने कहानी को बेहतर बनाया है। बहुत-बहुत धन्यवाद। सादर।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on January 2, 2017 at 8:49pm
आदरणीय कथा बहुत बढ़िया हुई है । एक जगह थोडा कन्फ्यूज़ हो रही हूँ ।
इलिशा अपने घर वालों के ख़िलाफ़ नहीं जा पायी। उसकी शादी किसी और से हो गयी, पहाड़ियों के बीच स्थित उसी गाँव में जहाँ अजय को आज बम गिराने का निर्देश मिला था।

यह जगह तो दुश्मनो वाली हुई न ? कृपया अन्यथा न लीजियेगा । सादर ।
Comment by Samar kabeer on January 2, 2017 at 8:35pm
जनाब महेन्द्र कुमार जी आदाब,अच्छी लगी आपकी लघुकथा,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
जनाब योगराज प्रभाकर साहिब की बात से सहमत हूँ ।

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 2, 2017 at 8:18pm

भाई महेंद्र कुमार जी ज़ाहिर सी बात है कि कोई सेना अपने मुल्क पर तो बमबारी करने से रहीI
"सरहद की दूसरी तरफ" यानि दूसरे देश मेंI मैंने यह बात शादी की जगह अस्पष्ट करने हेतु नहीं बल्कि स्पष्ट करने हेतु कही थी I

Comment by Mahendra Kumar on January 2, 2017 at 8:13pm
आदरणीय योगराज सर, आपने रचना पर उपस्थित हो कर उसका मान बढ़ाया, आपका बहुत-बहुत शुक्रिया। आपका दूसरा सुझाव मुझे बेहद पसन्द आया। यदि आप पहले के विषय में थोड़ा विस्तार से (आख़िर क्यों इलिशा की शादी की जगह को अस्पष्ट रखा जाए) बताएँगे तो अति कृपा होगी। आपका हार्दिक आभार। सादर।

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 2, 2017 at 8:05pm

लघुकथा बहुत अच्छी लगी भाई महेंद्र कुमार जी, बधाई प्रेषित हैI दो सुझाव, यदि पसंद आयें तो:

1. एलिज़ा की शादी सरहद की दूसरी तरफ बताई जाए.

2. जहाज़ क्रेश हो, मगर बम गिराने के बाद.       

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