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कोई राधा हुई दीवानी क्या (ग़ज़ल 'राज' )

2122  1212  22

जिन्दगी की नई कहानी क्या

हर कोई जानता बतानी क्या

 

मौत  के सामने कोई बचपन

या बुढ़ापा भला जवानी क्या

 

होंसलों से उगा शज़र उसको

ख़ास आबो हवा या पानी क्या

 

तिश्नगी इक नदी बुझाती थी

आज सहरा में है निशानी क्या 

 

कृष्ण देखा है आज क्या तुमने

कोई राधा हुई दीवानी क्या

 

फूल अगर हैं वतन के गुलशन के

फिर हरे और जाफ़रानी क्या

 

गर हो नाज़िम ही कान के कच्चे

सामने उन के हकबयानी क्या

 

आईना हू ब-हू दिखाता है   

‘राज’ उसमे है बदगुमानी क्या 

-------मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment by rajesh kumari on December 6, 2016 at 2:49pm

आद० समर भाई जी बहुत खूब सुझाया ..मैंने भी ये सोचा था ---गर हों काजी ही कान के कच्चे ----अब आप को जो सही लगे उसे रख दूँगी कृपया मार्ग दर्शन करें 


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Comment by मिथिलेश वामनकर on December 6, 2016 at 2:47pm

आदरणीया राजेश दीदी, बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने. शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं. आदरणीय समर कबीर जी ने बहुत बढ़िया संशोधन सुझाया है. सादर 

Comment by Samar kabeer on December 6, 2016 at 2:36pm
'गर ये नाज़िम हों कान के कच्चे'

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 6, 2016 at 2:20pm

आद० विजय निकोर जी ,आपकी दाद सर आँखों पर तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 6, 2016 at 2:19pm

आद० सुरेन्द्र नाथ भैया ,आपका दिल से बहुत बहुत आभार |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 6, 2016 at 2:19pm

आद० सुनील प्रसाद जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई सुंदर प्रतिक्रिया के लिए दिल से आभार आपका 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 6, 2016 at 2:18pm

आद० समर भाई जी ग़ज़ल पर आपकी दाद मिली और क्या चाहिए निजामी शब्द का अर्थ एक बार पहले भी स्पष्ट किया था किन्तु दुबारा लिख दिया कोई और सूटेबिल लफ्ज मिलने पर इसे बदल दूँगी आपका बहुत बहुत शुक्रिया 

Comment by vijay nikore on December 6, 2016 at 7:44am

इतनी खूबसूरत गज़ल कम ही मिलती है। शूरू से अंत तक, हर शेर का लुत्फ़ आया। बधाई।

Comment by नाथ सोनांचली on December 6, 2016 at 3:51am
बहन आद0 राजेश कुमारी जी बेहद उम्दा गजल हुयी है। शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकवाद कबूल फरमाएँ
Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on December 5, 2016 at 10:19pm
बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है मोहतरमा राजेश कुमारी जी दाद कुबूल फरमाए।

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