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उतर जाए अगर झूठी त्वचा तो (ग़ज़ल)

बह्र : १२२२ १२२२ १२२

 

उतर जाए अगर झूठी त्वचा तो।

सभी हैं एक से साबित हुआ, तो।

 

शरीअत में हुई झूठी कथा, तो।

न मर कर भी दिखा मुझको ख़ुदा, तो।

 

वो दोहों को ही दुनिया मानता है,

कहा गर जिंदगी ने सोरठा, तो।

 

समझदारी है उससे दूर जाना,

अगर हो बैल कोई मरखना तो।

 

जिसे मशरूम का हो मानते तुम,

किसी मज़लूम का हो शोरबा, तो।

 

न तुम ज़िन्दा न तुममें रूह ‘सज्जन’

किसी दिन गर यही साबित हुआ, तो।

--------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 27, 2016 at 6:34pm

तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ आदरणीय मिथिलेश जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 27, 2016 at 6:33pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय गिरिराज जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 27, 2016 at 6:33pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 27, 2016 at 6:33pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय गुरप्रीत सिंह जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 27, 2016 at 6:32pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय आमोद श्रीवास्तव जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 22, 2016 at 11:43pm

आदरणीय बड़े भाई धर्मेन्द्र जी, आपकी गज़लें वाकई भाव और शिल्प स्तर पर अद्भुत होती है. एक पाठक इनसे गुजरते हुए न केवल नयेपन पर मुग्ध होता है बल्कि जी उठता है. इस जीवंत ग़ज़ल के लिए दिल से बधाई स्वीकारें. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 22, 2016 at 11:25am

आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , ' तो ' रदीफ  मेरे अनुसार तो बहुत ही कठिन रदीफ है , क्या बात है , आपने जिस सहजता से शेर कहे हैं , काबिले तारीफ है , दिल से मुबारक बाद स्वीकार कीजिये ।

Comment by नाथ सोनांचली on November 21, 2016 at 5:56am
आदर्णीय धर्मेन्द्र जी सादर अभिवादन। उम्दा गजल के लिए बधाई निवेदित है।
Comment by Gurpreet Singh jammu on November 20, 2016 at 8:37pm
वाह धर्मेंद्र जी वाह.आपकी तो बात ही निराली है.इतने अलग और इतने बढ़िया रदीफ काफ़िये कहाँ से ले आते हैं आप.बहुत खूब.बहुत बधाई आपको.
Comment by amod shrivastav (bindouri) on November 20, 2016 at 6:46pm
क्या बात है
बधाई

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