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निशा अपने सात साल के बेटे के साथ दिवाली की खरीदारी करके घर वापिस आ रही थी। रस्ते में कुछ बच्चे पटाखे जला रहे थे। सारे वातावरण में बारूद की गंध और धुँआ फैला हुआ था। अचानक उसके बेटे को तेज खाँसी शुरू हो गई और इतनी बढ़ गई कि वह बेहोश हो गया। लोगों ने मदद करके उनको जल्दी से हस्पताल पहुँचाया। थोड़ी देर बाद वह सामान्‍य हो गया।

"डॉक्टर साहब, मेरे बेटे को क्या हुआ था? चिंता की बात तो नहीं है ना?"- निशा ने घबराते हुए पूछा।

"हाँ, यह अब ठीक है, लेकिन चिंता की बात तो है। इसे साँस लेने में समस्‍या हुई थी। यह पटाखों के धुएँ के कारण हुआ है। इसे ऐसे धुएँ से दूर रखें।"-डॉक्‍टर ने सलाह दी।

"माँ, जब थोड़े से धुएँ के कारण मेरी ऐसी हालात हो गई, तो दिवाली पर तो ना जाने क्‍या होगा। तब तो कितने पटाखे जलाए जाते हैं?" बेटे ने साथ चलते हुए चिंतित स्‍वर में पूछा।

निशा ने एक नजर बेटे के चेहरे पर डाली और फिर अगले ही पल मन ही मन कुछ प्रण करके अपनी पटाखों की भरी थैली को कुड़ेदान के हवाले कर दिया। हस्पताल के सामने बनी बगिया में सिर उठाए सूरजमुखी जैसे उसे सलाम कर रहा था।

 

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by शिज्जु "शकूर" on October 19, 2016 at 10:52am

वास्तविक मुद्दे को आपने उठाया है, हर नागरिक को अपनी ज़िम्मेदारी समझनी होगी, इस लघुकथा के लिए बधाई आपको

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 18, 2016 at 9:51pm
बहुत बढ़िया विषय व कथानक पर बढ़िया प्रस्तुति। मेरे विचार से अंतिम अनुच्छेद प्रभावशाली नहीं हो सका है। पटाखों से भरी थैली कूड़ेदान में फेंकना दुर्घटना को न्यौता देने जैसा है, उचित नहीं है।
Comment by Dr. Vijai Shanker on October 18, 2016 at 5:34pm
वायु प्रदूषण बहुत विषय है , नई पीढ़ी के लिए तो और भी। एक प्रेरक प्रेरक लघु- कथा , बधाई , आदरणीय विनोद खगनवाल जी , सादर।

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