For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राजू ! हाँ यही तो नाम था उस बच्चे का जिससे मैं मिली थी कुछ वर्षो पहले । अक्सर उसे अख़बार बाँटते हुए देखा था । बारह -तेरह वर्ष का बच्चा । गाड़ियों के पीछे भागता , सिग्नल होने पर गाड़ियों के कांच से अखवार ख़रीदने की गुहार करता । उसके साथ एक बच्ची शायद उसीकी बहन थी । कई बार सोचती थी रुक कर उससे बात करूँ । मासूम सा चहरा ,अपनी बहन का हाथ थामकर ही सड़क पार करता था ।
एक दिन उसी रास्ते से गुज़र रही थी पर वो लड़का नहीं दिखा । उसकी बहन के हाथों में अखबार थे । गाड़ी से उतर कर मैंने उसको अपने पास बुलाया । उसने कुछ देर रुकने को कहा । मैंने कार एक तरफ़ पार्क करवा दी थी । उसका इंतज़ार करने लगी । कुछ ही समय में अपने सारे अख़बार बेचकर मेरे करीब आकर बोली , "नमस्ते आँटी आपने मुझे क्यों बुलाया ? "
मैंने उसको अपने पर्स से एक चॉकलेट दी । उसने मना कर दिया । मैं उसकी तरफ देखती रही । मुझे देख उसने कहा , "नहीं आँटी मैं नहीं लेती किसीसे । भैया ने मना किया है । उसके इस स्वाभिमान को देखकर दंग रह गयी मैं । मैंने उससे उसके भाई के बारे में पूछा तो उसने उसका नाम बताया । उसने कहा की भैया बीमार है । मेरे बहुत कहने पर वो मुझे अपने संग ले गयी । एक सड़क से दूसरी सड़क दूसरी से तीसरी पता नहीं और कितनी सड़के पार कर ली हमने पर उसका ठिकाना न दिखा । आखिरकार एक जगह वो रुक गयी ।वहां जगह जगह सामान बिखरा पड़ा था । तो यहाँ रहते हो तुम दोनों इस फूटपाथ पर ।
दोनों के चहरों पर उदासीनता आ गयी । मैंने उनसे उनके परिवार के बारें में पूछा तो वे बोले , " बापू को तो देखा नहीं कभी हाँ माँ कहती थी कोई अमीर आदमी था हमारा बापू । उसने माँ को छोड़ दिया । जगह जगह भटकने के बाद हम यहाँ पहुंचे । "
और तुम्हारी माँ कहाँ है मैंने उत्सुकता वश पूछा ।
वे बोले ," माँ भी मर गयी , एक कार वाले ने माँ को मार दिया । हम तीनो तो यहीं सो रहे थे । उसने अपनी कार हमारी माँ के ऊपर से चढ़ा ली और वो मर गयी । यह कहते हुए दोनों के आँखों से आँसू बह रहे थे । फिर तुम दोनों का गुज़ारा ! मैंने पूछा । राजू ने बताया , " मैं सुबह और शाम के अखबार बांटता हूँ । दोपहर को बूट पोलिश करता हूँ । वही पास में एक होटल है उनको कोई काम होता है तो सेठ बुला लेते है । हमें उसके बदले खाना दे देते है । कैसे भी गुज़ारा चल जाता है ।"
यह बातें हो रही थी कि उसकी बहन ने अपने भाई का हाथ कस के पकड़ लिया उसके चहरे पर डर था । माथे पर पसीना आ रहा था । राजू जब की बीमार था मुश्किल से उठा और उसकी तरफ बढ़ा ।जाते हुए उसने मुझसे कहा , " थोड़ी देर के लिए मेरी बहन को संभाल लीजिये मैं अभी आया । " मैं कुछ समझ सकूँ उसके पहले तो उसने पास पड़े हुए एक बोरी से कुछ निकाला और उस शक्श की ओर दौड़ पड़ा । बच्ची ने मेरा हाथ कस के पकड़ रखा था । मुझे मेहसूस हो रहा था अवश्य ही कुछ गड़बड़ है । मैं जानना चाहती थी आख़िर कौन था यह सख्श । मेरी नज़र राजू के तरफ ही थी । लग रहा था जैसे वो सख्श राजू को धमकी दे रहा था । राजू उसके पैरों पर गिड़गिड़ाने लगा था । थोड़ी देर बाद जब वो वापिस आया मैंने कुछ पूछना चाहा । उसने शायद मेरी इच्छा जान ली थी । उसने मुझसे कहा , " यह एक दल्ला था , यह मेरी गुड़िया को मुझसे छीनने आता है । यह हर कभी आ जाता है और मुझसे पैसे माँगता है । और पैसे न देने की बात करूँ तो मुझे धमकाता है की मेरे हाथ पैर कटवा देगा और भीख मंगवायेगा और गुड़िया को बेच देगा । "
और उन दोनों की ज़िन्दगी को देखते हुए अपने कानून के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया । मुक्त आकाश में भी आज़ादी कहीं नहीं है । मेरे दिमाग में एक हलचल सी पैदा हुई । मैंने उनसे वादा किया कि जल्द ही उनके लिये कुछ करूंगी । भारी मन से मैं वहाँ से चली आई पर मेरे मन मष्तिस्क से इन दोनों की छवि नहीं हट रही थी । मन ही मन तय कर चुकी थी कि इनके लिए कुछ न कुछ जरूर करूंगी । मैं घर आई चाय पी और इस वर्त्तान्त को लिखने बैठ गयी । लिखते वक़्त भी उन मासूमों के चेहरे मेरे सामने आ रहे थे मानो पूछ रहें हो मुझसे कि मैं कुछ कर पाऊँगी की नहीं । कुछ दिन ऐसे ही बीत गए । एक दिन अचानक राजू की बहन को मैंने मेरे घर के पास किसीको ढूंढते हुए देखा । मैं बाहर आई और मैंने उसको पूछा , " क्या हुआ तुम इस तरह यहाँ क्यों घूम रही हो ? "
वो मुझसे चिपक गयी और बोली , "आंटी भैया को पुलिस पकड़ कर ले गयी । " मैं आवक से उसको देखती रही । उसको लेकर अपने घर आई । उसको गर्म दूध दिया और ब्रेड दी ।उसने झट से खा लिया । यह समझने में देर न लगी कि उसने बहुत दिनों से कुछ खाया नहीं था। उसने रोते रोते ही खाया ।
उसने रट लगा ली थी ,"मेरे भैया को बचाओ मेरे भैया को बचाओ । "
मैंने उससे वादा किया की सुबह उठते ही पुलिस स्टेशन जायेंगे । मेरे पूछने पर उसने मुझे बताया कि राजू ने उस सख्श का खून कर दिया था । वो रोते हुए बोले जा रही थी , " मेरे भैया को पुलिस ले गयी बहुत मारा भैया को । मेरे भैया को पुलिस छोड़ देगी ना ? "
मेरे पास उस मासूम के सवालों का कोई जवाब न था । उसको तो मैंने सुला दिया पर मुझे चैन न था । मैंने एक वकील मित्र से बात की । वकील के साथ सुबह पुलिस स्टेशन गयी ।तो पता चला की राजू की जमानत न हो पायेगी । उसको रिमांड होम भेजा जा चूका था । कोर्ट केस चला चलता रहा । आज इस बात को बीस साल हो गए । राजू अब भी न्याय की प्रतीक्षा में है । अब भी जेल में ही है । उसकी बहन को मैंने अपने घर में ही रख लिया था ।उसको पढ़ाया लिखाया । ग्रेजुएशन के बाद उसके हाथ पिले कर दिए । अब वो अपने घर में खुश है । पहले की तरह तो वो अपने भाई को याद नहीं करती । शायद उसने अपनी ज़िन्दगी से समझौता करना सीख लिया था । पर मेरे मन में अब भी बहुत सारे प्रश्न थे । जिसके कोई उत्तर नहीं थे मेरे पास ।
आज भी उसी जगह से जब भी गुज़रती हूँ राजू दिखायीं देता है वैसे ही सड़को पर अखबार बाँटते हुए ।

(मौलिक/अप्रकाशित)

Views: 619

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 9, 2016 at 9:25pm

धन्यवाद आदरणीया अलका जी |

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on September 9, 2016 at 9:23pm

कैसी परिस्थिति में जीते है हजारों बच्चे और यहाँ सिर्फ वादे ही वादे ,परिणाम... कुछ  भी नहीं... प्रश्न दागती इस  रचना के लिए आपको बधाई आदरणीया कल्पना जी 

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 2, 2016 at 7:21am
धन्यवाद आदरणीय शहज़ाद भाई ।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 2, 2016 at 2:05am
इस रचना के माध्यम से आपकी बेहतरीन लेखनी से परिचय हुआ है लघु कहानी लेखन संदर्भ में। बहुत ही भावपूर्ण बढ़िया प्रस्तुति के लिए हृदयतल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीया कल्पना भट्ट जी। इस प्रवाहमय रचना में शासन- प्रशासन, क़ानून व समाज सब पर सवाल उठाये गये हैं।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 1, 2016 at 10:23pm
आपको यह प्रयास पसंद आया । बहुत आभारी हूँ आदरणीया प्रतिभा दी।
Comment by pratibha pande on September 1, 2016 at 7:24pm

ढेर सारी योजनाएं ,ढेरों वादों  के बाद भी  ऐसे बच्चों की स्थिति जस की तस रहती है ,,हमारी न्याय प्रणाली और व्यवस्था के ऊपर प्रश्न दागती रचना के लिए आपको बधाई आदरणीया कल्पना जी 

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 1, 2016 at 3:45pm
आदाब जनाब समर साहब । आपको मेरा यह प्रयास पसंद आया सार्थक हुई मेरी कोशिश । बहुत बहुत शुक्रिया आपका ।
Comment by Samar kabeer on September 1, 2016 at 3:28pm
मोहतरमा कल्पना भट्ट साहिबा आदाब,बहुत उम्दा लगी आपकी लघु कहानी,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  …See More
Monday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-169

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मन में केवल रामायण हो (,गीत)- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बेहतरीन 👌 प्रस्तुति और सार्थक प्रस्तुति हुई है ।हार्दिक बधाई सर "
Monday
Dayaram Methani commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मन में केवल रामायण हो (,गीत)- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, अति सुंदर गीत रचा अपने। बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post लघुकविता
"सही कहा आपने। ऐसा बचपन में हमने भी जिया है।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' shared their blog post on Facebook
Sunday
Sushil Sarna posted blog posts
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
Saturday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
Saturday
Dharmendra Kumar Yadav posted a blog post

ममता का मर्म

माँ के आँचल में छुप जातेहम सुनकर डाँट कभी जिनकी।नव उमंग भर जाती मन मेंचुपके से उनकी वह थपकी । उस पल…See More
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक स्वागत आपका और आपकी इस प्रेरक रचना का आदरणीय सुशील सरना जी। बहुत दिनों बाद आप गोष्ठी में…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"शुक्रिया आदरणीय तेजवीर सिंह जी। रचना पर कोई टिप्पणी नहीं की। मार्गदर्शन प्रदान कीजिएगा न।"
Nov 30

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service