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कुछ पाने की तमन्ना में हम खो देते बहुत कुछ है

अँधेरे में रहा करता है साया साथ अपने पर
बिना जोखिम उजाले में है रह पाना बहुत मुश्किल

ख्वाबों और यादों की गली में उम्र गुजारी है
समय के साथ दुनिया में है रह पाना बहुत मुश्किल

कहने को तो कह लेते है अपनी बात सबसे हम
जुबां से दिल की बातो को है कह पाना बहुत मुश्किल

ज़माने से मिली ठोकर तो अपना हौसला बढता
अपनों से मिली ठोकर तो सह पाना बहुत मुश्किल

कुछ पाने की तमन्ना में हम खो देते बहुत कुछ है
क्या खोया और क्या पाया कह पाना बहुत मुश्किल

कुछ पाने की तमन्ना में हम खो देते बहुत कुछ है
"मौलिक व अप्रकाशित"
मदन मोहन सक्सेना

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Comment by Ashok Kumar Raktale on August 7, 2016 at 5:28pm

आदरणीय मदन मोहन सक्सेना जी सादर, सुंदर भावपूर्ण रचना हुई है किन्तु आदरणीय गिरिराज भंडारी जी का प्रश्न तो अपनी जगह है ही. सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 6, 2016 at 9:43am

आदरणीय मदन मोहन भाई , रचना के भाव अच्छे लगे , हार्दिक बधाई । किस विधा की रचना है ये नही समझ पाया ।

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 4, 2016 at 3:15pm
कहने को तो कह लेते है अपनी बात सबसे हम
जुबां से दिल की बातो को है कह पाना बहुत मुश्किल
ज़माने से मिली ठोकर तो अपना हौसला बढता
अपनों से मिली ठोकर तो सह पाना बहुत मुश्किल वाह । बहुत खूब ।हार्दिक बधाई आदरणीय

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