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जिंदगानी लुटाने की बात करते हो

किस ज़माने की बात करते हो
रिश्तें निभाने की बात करते हो

अहसान ज़माने का है यार मुझ पर
क्यों राय भुलाने की बात करते हो

जिसे देखे हुए हो गया अर्सा मुझे
दिल में समाने की बात करते हो

तन्हा गुजरी है उम्र क्या कहिये
जज़्बात दबाने की बात करते हो

गर तेरा संग हो गया होता "मदन "
जिंदगानी लुटाने की बात करते हो

मौलिक और अप्रकाशित

मदन मोहन सक्सेना

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Comment by रामबली गुप्ता on September 30, 2016 at 5:21am
अच्छा प्रयास है। वह्र क्या है इस गज़ल में?
Comment by Samar kabeer on September 27, 2016 at 2:57pm
जनाब मदन मोहन सक्सेना साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,लेकिन अभी आपको बहुत अभ्यास की ज़रूरत है,ओबीओ पर ग़ज़ल की कक्षा का लाभ उठाएं ।
इस प्रस्तुति के लिये बधाई आपको ।

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