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जीत की हार, हार की जीत (लघुकथा)/ शेख़ शहज़ाद उस्मानी

पिछले कुछ महीनों से अपने नौजवान बेटे के विचार सुन कर और गतिविधियाँ देखकर वे बहुत परेशान चल रहे थे। आज पुस्तकालय में अपने भरोसेमंद मित्र से मुलाक़ात होने पर उन्होंने कहा, "मासाब, अगर थोड़ा समय दे सको, तो मैं अपनी समस्या आपके सामने रखूं?"

"जी बिलकुल, कहिये!"

"मासाब, मेरा बेटा कह रहा है कि उसे तो सिर्फ़ सभी धर्मों के ग्रंथों को पढ़ने व समझने में रुचि है, वह भी तुलनात्मक अध्ययन करके लोगों को अच्छी सच्ची बातें व्याख्यान देकर समझायेगा!"

"ये तो बहुत ही अच्छी बात है, इसमें परेशान होने की क्या बात है? दुनिया में आख़िर कितने लोग कर पाते हैं ऐसा?"

"वो तो ठीक है, लेकिन वह ज़िद पर अड़ा है कि न तो आगे पढ़ाई करेगा और न ही कोई नौकरी!"

"अरे! ऐसी भी क्या ज़िद? फिर पैसे कैसे कमायेगा, जीवन कैसे बितायेगा?" मित्र ने बड़े ही आश्चर्य से पूछा।

"कह रहा है ज़ल्दी ही छा जाऊंगा, सेमिनार करूँगा, कुछ नया मिलेगा जनता को, तो चंदा भी मिलेगा! फिर एन.जी.ओ. और करोड़पति होने तक की बातें फेंक रहा है, मासाब कुछ करो, मैं तो बहुत परेशान हूँ!" माथे पर हाथ रखते हुए उन्होंने बड़ी उम्मीद से मित्र की ओर देखा।

"देखो दोस्त, इस सदी में सभी धर्मों की अच्छी साझा बातें सामने लाकर व अंतर समझ कर समझाने का काम है तो बढ़िया! लेकिन इसमें जीत कर भी हार ही होती है!"

"क्या मतलब?" वे कुछ उत्तेजित से होकर बोले।

"जब तक सभी लोग ख़ुद अपने-अपने धार्मिक ग्रंथों को व दूसरे धर्मों के ग्रंथों को पढ़ेंगे, समझेंगे नहीं, व्याख्यानों के सही भावार्थ भी नहीं समझ सकेंगे और अर्थ का अनर्थ ही होगा!"

"तो मासाब बेटे से क्या कहूँ?"

"उससे कहना कि माहौल देख रहे हो न! जब ऐसे सफल लोग जीत कर छा जाते हैं, तो शब्दों व वाक्यों पर टांग खिंचाई शुरू हो जाती है! महिला-शोषण, बाल-शोषण या आतंकवादी गतिविधियों और धन-उगाही जैसे मामलों में लपेट कर चारों खाने चित कर दिया जाता है! न लोग सुधरेंगे, न जग सुधरेगा!" मित्र ने हाथ झटकते हुए कहा, "अहं, वहम और राजनीति के कारण,जीत की हार और हार की जीत से धर्म का मर्म कोई नहीं समझेगा!"

[मौलिक व अप्रकाशित]

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Comment by rajesh kumari on July 11, 2016 at 10:55pm

अच्छी  लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई 

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on July 11, 2016 at 9:50pm

बहुत खूब आदरणीय शेख शहजाद जी.

Comment by Nita Kasar on July 11, 2016 at 9:09pm
कथा के ज़रिये आपने सार्थक संदेश दिया है,अब जनता नब्ज़ पहचानने लगी है जिस दिन धर्म का मर्म लोग समझने लगेंगे इन कोरे प्रचारकों की ज़रूरत ही ना होगी बधाई आपको आद०शेख शहज़ाद उस्मानी जी ।
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on July 11, 2016 at 3:09pm
आदरणीय शेख शहज़ाद सर बहुत उम्दा बात, और बहुत सामयिक मुद्दा। बधाइयाँ
Comment by TEJ VEER SINGH on July 11, 2016 at 1:34pm

बधाई शेख उस्मानी जी!विषय तो आपने बिलकुल नया चुना है, आजकल इसपर खूब माथापच्ची हो रही है!आपका प्रयास निःसंदेह सराहनीय है!मगर इसे कौन कितना समझ पाता है ,यह देखनेवाली बात है!मुझे आपकी लघुकथा अच्छी लगी!

Comment by Samar kabeer on July 11, 2016 at 11:55am
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी साहिब आदाब,बहुत बढ़िया विषय चुना आपने लघुकथा के लिये, सब लोग अगर अपने धर्म का पालन करने लगें तो कोई समस्या ही नहीं,लेकिन अपने धर्म ग्रन्थ ही लोग नहीं पढ़ते तो दूसरे धर्म को क्या पढ़ेंगे और क्या समझेंगे ।
इस शानदार लघुजथ के लिये दिल से बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Rahila on July 11, 2016 at 9:41am
वाह.. लाख टके की बात कह डाली आपने तो!बहुत बढ़िया प्रस्तुति आदरणीय उस्मानी जी।सादर

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