For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बह्र नई सी आप तो कोई, उम्दा ग़ज़ल ही लगती हैं- ग़ज़ल

2222 2222 2222 222
-----------------------------------------------------------------
आपकी नज़रें ताज़ा ताज़ा, फूल कमल ही लगती हैं।
बह्र नयी सी आप तो कोई, उम्दा ग़ज़ल ही लगती हैं।।

चाह रहे हैं छू लें लेकिन, रुसवाई से हम डर जाते।
जबकी मुस्का कर मिलती हैं, आप सरल ही लगती हैं।।

इसकी प्यास कई सदियों की, है मन का पंछी व्याकुल।
आप स्रोत सब मदिराओं की, असली तरल ही लगती हैं।।

जितने रूप धरा के सुन्दर, सारे हैं फीके फीके।
आपकी फ़ोटो कॉपी सारे, आप असल ही लगती हैं।।

चाँदनी में जब भी मिलता हूँ, प्यास नज़र की बढ़ जाती।
रूप धवल मनमोहक बिल्कुल, ताज़महल ही लगती हैं।।

मौलिक-अप्रकाशित

Views: 1031

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on June 5, 2016 at 12:36pm
आदरणीय सौरभ सर सादर प्रणाम। आपके सुझावों के अनुरूप संशोधन करने की कोशिश करता हूँ।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 3, 2016 at 8:31pm

इससे पहले कि इस ग़ज़ल पर कुछ कहूँ, निवेदन है कि आप मिसरों के वज़न को पन्द्रह गुरु के हिसाब से कर लें. ऐसी मात्रिक बहरों में लगातार दो लघुओं का कोई अर्थ नहीं होता. ये मात्रिक बहरें हैं जो कि फेलुन-फेलुन.. फ़ा के अनुसार निबद्ध होती हैं. यहाँ फेलुन की संख्या शाइर के अनुसार हुआ करती है, जिसमें दो गुरु होते हैं. यही कारण है कि आपकी इस ग़ज़ल के मिसरे का वज़न पन्द्रह गुरु का निवेदन कर रहा हूँ.

दूसरे, बहर कोई हो, उसमें अपने हिसाब से जोड़-तोड़ करने से बचना चाहिए. शुरुआती दौर में तो और भी इसे निषेध माना जाना चाहिए. बहर का निर्धारण आला दर्ज़े के उस्तादों का काम है, न कि हमारे-आपके जैसे अभ्यासियों का.

अब आपकी इस ग़ज़ल पर -

 इस तरह की मात्रिक बहर की खुसूसियत इसकी गेयता या इसके मिसरों का प्रवाह हुआ करता है. वाचन में प्रवाह तनिक बाधित हुई तो सारा मिसरा लाख अच्छी कहन के कमज़ोर हो जाता है. आपने त्रिकल शब्दों की संभावनाओं का स्थान तय कर दिया है जो कि एक बन्धन की तरह सामने आया है. जबकि होना यह चाहिए था कि मिसरों में त्रिकल का स्थान खुला होता. इससे आपके शाइर को मात्रिकता के निर्वहन में सहजता होती.  

उपर्युक्त संदर्भ में योंतो सारे मिसरों पर आप एक बार काम करलें, लेकिन  चाह रहे हैं छू लें लेकिन, रूठने से हम डर जाते.. इस मिसरे को फिर से सहज करने की कोशिश करें, पंकज भाई.

वैसे इस बहर पर और इसके विन्यास पर तो आपसे टेलिफोन पर लम्बी बात हो चुकी है. 

शुभेच्छाएँ 

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on June 3, 2016 at 8:13pm
आदरणीय समर सर सादर प्रणाम, तारीफ के लिए बहुत बहुत शुक्रिया।
Comment by Samar kabeer on June 3, 2016 at 2:30pm
जनाब पंकज कुमार मिश्रा जी आदाब,ग़ज़ल अच्छी हुई है, दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा अष्टक (प्रकृति)
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय मुसाफ़िर जी "
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा अष्टक (प्रकृति)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। उत्तम दोहे रचे हैं हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छः दोहे (प्रकृति)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। उत्तम दोहे रचे हैं हार्दिक बधाई।"
Thursday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रस्तुति को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी ।हार्दिक आभार "
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion गजल : निभत बा दरद से // सौरभ in the group भोजपुरी साहित्य
"किसी भोजपुरी रचना पर आपकी उपस्थिति और उत्साहवर्द्धन किया जाना मुझे अभिभूत कर रहा है। हार्दिक बधाई,…"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहे (प्रकृति)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। उत्तम दोहे रचे हैं हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुन्दर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
Shyam Narain Verma replied to Saurabh Pandey's discussion गजल : निभत बा दरद से // सौरभ in the group भोजपुरी साहित्य
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर भोजपुरी ग़ज़ल की प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

गजल : निभत बा दरद से // सौरभ

जवन घाव पाकी उहे दी दवाईनिभत बा दरद से निभे दीं मिताई  बजर लीं भले खून माथा चढ़ावत कइलका कहाई अलाई…See More
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Feb 2
Shyam Narain Verma commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर और ज्ञान वर्धक लघुकथा, हार्दिक बधाई l सादर"
Feb 1
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
Feb 1

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service