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उफान नहीं होते

दिखा दे आईना मिला दे खुदी से

अब ऐसे कोई इम्तहान नहीं होते ......

मसीहा के घर न उगे ज्यों मसीहा


बेईमान के हमेशा बेईमान नहीं होते.......

गलियों के ज़िम्मे वो मासूम बचपन

जिनके सर निगेहबान नहीं होते ........

किस्से उनके भी कम नहीं होते

जिनके कभी दर्ज़े बयान नहीं होते ......

महलों में ही चलती हैं सेंधों की बातें

झोंपड़ में कभी दरबान नहीं होते .......

ईमान के रसालों में वो ही छपे हैं

जिनके ज़रा भी ईमान नहीं होते ......

दिल में उनके भी होते हैं तूफ़ान

चेहरे पे जिनके उफान नहीं होते ........

मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment

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Comment by amita tiwari on April 12, 2016 at 11:11pm

 आपके  प्रोत्साहन  ने रचना -के प्रयास को सार्थक कर दिया।

हार्दिक आभार

अमिता

Comment by vijay nikore on April 6, 2016 at 12:51pm

अच्छी रचना के लिए बधाई।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 6, 2016 at 11:56am

बहुत सुन्दर प्रस्तुति दिल से बधाई लीजिये 

Comment by kanta roy on March 28, 2016 at 11:13am

महलों में ही चलती हैं सेंधों की बातें

झोंपड़ में कभी दरबान नहीं होते ------वाह !  बिलकुल  सही ! बहुत  बढ़िया , बधाई  आपको  आदरणीया  अमिता  जी   

Comment by Samar kabeer on March 27, 2016 at 6:36pm
मोहतरमा अमिता तिवारी जी आदाब,सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।
Comment by रामबली गुप्ता on March 27, 2016 at 2:39pm
बहुत ही सुंदर रचना अमिता जी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 27, 2016 at 11:02am
आदरणीय तेजवीर जी ये रचना ग़ज़ल नहीं है

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 27, 2016 at 11:01am
अच्छी रचना है अमिता जी
Comment by TEJ VEER SINGH on March 27, 2016 at 9:21am

हार्दिक बधाई आदरणीय अमिता तिवारी जी!बेहतरीन गज़ल!

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