जाते हुए साल
एक बात पूछनी है
सीधा सीधा सा बस एक सवाल
कि तुम हर साल बदलने वाला
केवलमात्र क्या एक अंक हो
अथवा समझते हो कि तुम निष्कलंक हो
सारी जिम्मेवारी समय के काँधों पर डाल
किसे बहलाते हो
कुछ बदल नहीं सकते
अथवा बदलना नहीं चाहते
तो फिर -फिर क्यों आते हो
एक चेतावनी समझ लेना
अब के तभी आना
जो यदि
बंद करा सको युद्ध को
मुक्त करा सको प्रबुद्ध को
अथवा वहीं रहना
किसी से न कहना
कि तुम हार गए हो
..........
मौलिक व…
Added by amita tiwari on December 15, 2023 at 12:00am — 1 Comment
दिल का दादी होना
Added by amita tiwari on February 14, 2023 at 4:00am — No Comments
ज़मीन पर पड़ा अवशेष
बरगद का मूल आधार शेष
सोचता है आज
कल तक था बरगद विशाल
बरगदी सोच,बरगदी ख्याल
बरगदी मित्र ,मन भी बरगदी
सहयोगी प्रतिद्वंदी बरगदी बरगदी
गर्वित निज का उत्कर्ष रहा
शेष की लघुता पर हर्ष रहा
निज तक की जड़ को नहीं ताका
गैर की छांह को कभी न लांघा
झुकना न सीखा सूखना न जाना
मनना न सीखा रूठना न जाना
आंधी को थकाया
मेघों को रुलाया
जलते सूरज को छतरी…
ContinueAdded by amita tiwari on May 9, 2022 at 9:00pm — 11 Comments
युद्ध के विरुद्ध हूँ मैं …
Added by amita tiwari on March 30, 2022 at 12:00am — 5 Comments
छोटी सी पुकार
क़ि छोटा सा एक नीड़ है
मेरी अमानत
इस पर नज़र रखना…
Added by amita tiwari on December 30, 2021 at 11:30pm — No Comments
आज
काश ! सलाह दे पाऊँ
दीवार को
कि बाहों में भर
फुसफुसा ले
सुना ले सारी दिल की बातें
कर ले सारे गिले शिकवे शिकायतें
ठंडी साँसों को और गहराले
कर ले कलेजे का लिहाज़
कि कहाँ अब बाकि हफ़्ते दिन रैन
घड़ी दो घड़ी की भी क्या बिसात
कि बस सीने से चस्पाँ कलेंडर
इतिहास हो जाने को है
काल क़ा चक्र एहसास हो जाने को है
जी चाहता है
स्मरण दिला दूँ
दीवार को
क़ि ये भी…
ContinueAdded by amita tiwari on December 30, 2021 at 11:30pm — 1 Comment
सपूत को स्कूल वापिसी पर उदास देखा
चेहरा लटका हुआ आँखों में घोर क्रोध रेखा
कलेजा मुंह को आने लगा
कुछ पूछने से पहले जी घबराने लगा
आखिर पूछना तो था ही
जवाब से जूझना तो था ही
जवाब मिला
ग्लोबल वार्मिंग !!
ग्लोबल वार्मिंग ??
माथा ठनका !
बेचारी उषमिता ने ऐसा क्या कर दिया
कि लाल को इतना लाल कर दिया
जवाब जारी था कि
आपकी पीढी का सब किया कराया है
पारे को इतना ऊपर पहुँचाया…
ContinueAdded by amita tiwari on May 4, 2021 at 9:30pm — 3 Comments
Added by amita tiwari on March 4, 2021 at 8:30pm — 1 Comment
ये जो है लड़की
हैं उसकी जो आँखे
हैं उनमें जो सपने
जागे से सपने
भागे से सपने
सपनों में
पंख
पंखों में
परवाज
बंद खामोशी में पुरज़ोर आवाज
आवाज़ में
वादा
बहुत सच्चा, बहुत सीधा -बहुत सादा
कि
मुझे आसमान दे दो
छोटा सही इक जहान दे दो
बदले में देती हूँ वादा
कि अकेली आसमान नहीं ओढ़ूँगी
ओढ़ ही नहीं पाऊँगी
ऐसी ही बनी हूँ मैं
स्वंय को छोड़ ही नहीं…
ContinueAdded by amita tiwari on March 3, 2021 at 10:00pm — 2 Comments
सर्दीली सांझ ऐसे आई मेरे गाँव
Added by amita tiwari on January 19, 2021 at 4:00am — 2 Comments
नए वर्ष चल थाम उंगली दिखाऊँ
तुझ को बहुत काम करने को हैं
दिये जो जख्म गत वर्ष तूने
इस साल तुझ ही को भरने को हैं
आ चल दिखाऊँ तुझे यह स्कूल
दीवारों पे जाले हैं खाली पड़ा है
भरोसा दिलाना, घर से बुलाना
जिम्मा तुम्हारा यह सचमुच बड़ा है
आ चल दिखाऊँ सड़कें वो पटरी
वीरान चक्का भोंपू बहरा हैं
इंजन को जंग है चालक उनींदे
महीनों से सब कुछ यहीं ठहरा है
आ चल दिखाऊँ तुझको वीरानी
वीरान झूले…
ContinueAdded by amita tiwari on January 3, 2021 at 12:00am — 1 Comment
अपूर्ण मानव की अर्ध-क्षमताओं का पूर्ण उपहास उड़ाता
बीतते बीतते बीत गया यह साल
धरा चलती रही ,परिक्रमा करती रही
निज धुरी की भी सूरज की भी ...
चंद्रमा ने भी हिम्मत कहाँ हारी
ग्रहणों से ग्रसित होता रहा
मगर परिक्रमाएँ ढोता रहा
तारों ने कहाँ टिमटिमाना छोड़ा
घोड़ों ने कहाँ हिनहिनाना छोड़ा
कोयल भी वैसी ही कूकी
कागा भी वैसे ही कगराया
बस सिसकी…
ContinueAdded by amita tiwari on January 1, 2021 at 3:00am — 2 Comments
अब जब दामिनी चली गई है
चले जा चुके हैं उसके हत्यारे भी
वो नर पशु
जिनसे सब स्तब्ध रहे
दरिंदगी से त्रस्त रहे
हर तरफ मौत की मांग उठती रही
दबती रही उठती रही बिलखती रही
मेरी भी एक मांग रही
कि एक बार मुझे उन नर-पशुओं की माताओं से मिलाया…
ContinueAdded by amita tiwari on December 26, 2020 at 3:00am — 2 Comments
नंगे पाँव
ठंड मे ठिठुरते
फुला फुला के गुब्बारे बेचते
किसी शहरी बचपन को देखो
तो मोल भाव मत करना
शुक्र मनाना
कि तुम्हारे पास गाँव है
गरीब सही पर सुरक्षित पाँव हैं
ठंड मे ठिठुरते
नंगे पाँव गुब्बारे बेचते
किसी शहरी बचपन को देखो
तो मोल भाव मत करना
इसी उम्र के अपने नौनिहालों को याद करना
उनके लिए शुक्र मनाना
कि तुम्हारे पास बल है बलबूते हैं
उनके पास पाँव हैं
पाँव…
ContinueAdded by amita tiwari on December 10, 2020 at 2:30am — 5 Comments
मेरे छोटे से बेटे तक ने थाली सरका दी । कहा नहीं खाऊँगा । इस खाने को उगाने वाले अन्नदाता यदि भूखे हैं ,बेघर हैं उनकी आवाज़ गले मे घुट रही है तो नैतिकता की मांग है कि मुझे ये खाना खाने का हक़ नहीं है । नहीं जानता हूँ कि कौन कितना गलत है या सही है लेकिन इतना ज़रूर जानता हूँ कि ऐसे मौसम मे घर छोडने का ,सड़कों पर बैठने का और सर पर कफन बांधने का शौक किसी को नहीं हो सकता । जब भविष्य अंधकारमय लगता है तभी वर्तमान ऐसे कदम उठाता है तब जीवन और मौत मे कोई अंतर नहीं रह जाता है । एक आम…
ContinueAdded by amita tiwari on December 9, 2020 at 1:43am — 8 Comments
Added by amita tiwari on November 24, 2020 at 1:30am — 3 Comments
सच यह है कि
अंधा होने के लिए नेत्रहीन होना कोई शर्त नहीं होती
वरना किसी युग में द्रौपदी कभी कहीं नही रोती
बल्कि सच यह है कि
जब जब राजा अंधा होता ,पूर्ण अंध हो जाता काज
क्या मर्यादा,वचन प्रतिज्ञा सब का सब कोरी बकवास…
ContinueAdded by amita tiwari on October 30, 2020 at 12:00am — 4 Comments
अनगिन हों सूरज दहकते हों तारे
पर साँसों में भी घुल जाए अँधियारा
तो कोई करे भी तो क्या करे
प्रहरी हों रक्षक पति ही पति हों
पर फांसी हो जाये निज साड़ी किनारा
तो कोई करे भी तो क्या करे …
ContinueAdded by amita tiwari on August 1, 2020 at 5:30am — 3 Comments
सुनते आए थे कि घूरे के …
ContinueAdded by amita tiwari on July 15, 2020 at 3:30am — 1 Comment
एक मजदूर जननी एक मजबूत जननी
कितने आलसी हो चले हैं दिन
कितनी चुस्त हो चली हैं रातें
इधर खत्म से हो चले किस्से
उधर खत्म सी हो चली बातें
जानते थे दिन कि
अब क्यों हो चले है ऐसे
जानते थे दिन कि
कभी नहीं थे ऐसे ऐसे
सुनते थे कि दिन -दिन का फेर होता है
सुनते थे कि इंसाफ मे देर हो भी जाये
सुनते थे कि इंसाफ मे अंधेर नहीं होता है
पर दिन का एक नकाब…
Added by amita tiwari on May 31, 2020 at 8:00pm — 2 Comments
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