For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अंतिम श्रृंगार (लघुकथा)

उसकी दाढ़ी बनाई गयी, नहलाया गया और नये कपडे पहना कर बेड़ियों में जकड़ लिया गया| जेलर उसके पास आया और पूछा, "तुम्हारी फांसी का वक्त हो गया है, कोई आखिरी इच्छा हो तो बताओ|"

उसका चेहरा तमतमा उठा और वो बोला, "इच्छा तो एक ही है-आज़ादी| शर्म आती है तुम जैसे हिन्दुस्तानियों पर, जिनके दिलों में यह इच्छा नहीं जागी|"

वो क्षण भर को रुका फिर कहा, “मेरी यह इच्छा पूरी कर दे, मैं इशारा करूँ, तभी मुझे फाँसी देना और मरने के ठीक बाद मुझे इस मिट्टी में फैंक देना फिर फंदा खोलना|"

जेलर इस अजीब सी इच्छा को सुनकर बोला, "तू इशारा ही नहीं करेगा तो?"

वो हँसते हुए बोला, " आज़ादी के मतवाले की जुबान है, अंग्रेज की नहीं...."

जेलर ने कुछ सोचकर हाँ में सिर हिला दिया और उसे ले जाया गया| उसके चेहरे पर काला कपड़ा बाँधा गया, उसने जोर से साँस अंदर तक भरी, फेंफड़े हवा से भर गए, कपड़े में छिपा उसका मुंह भी फूल गया| फिर उसने गर्दन हिला कर इशारा किया, और जेलर ने जल्लाद को इशारा किया, जल्लाद ने नीचे से तख्ता हटा दिया और वो तड़पने लगा|

वहां हवा तेज़ चलने लगी, प्रकृति भी व्याकुल हो उठी| मिट्टी उड़ने लगी, जैसे उसका सिर चूमना चाह रही हो, लेकिन काले कपड़े से ढके उसके चेहरे तक पहुँच न सकी| उसकी साँसों की गति हवा की गति के साथ मंद होती गयी, और कुछ ही क्षणों में उसका शरीर शांत हो गया| उसे उतार कर धरती पर फैंक दिया गया, वो जैसे करवट लेकर सो रहा था| फिर उसके फंदे को खोला गया, फंदा खोलते ही उसके फेंफडों में भरी हवा तेज़ी से मुंह से निकली और धरती से टकराई, मिट्टी उड़कर उसके चेहरे पर फ़ैल गयी|

आखिर देश की मिट्टी ने उसका श्रृंगार कर ही दिया|

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 616

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on March 7, 2016 at 8:04pm

आदरणीय मिथिलेश जी, आदरणीया राहिला जी, आदरणीय सुरेन्द्र कुमार शुक्ला जी, आदरणीय डॉ. विजय शंकर जी, आप सभी कर सादर आभार आप सभी ने रचना को पसंद कर अपनी टिप्पणी से मेरा उत्साहवर्धन  किया। निवेदन है कि ऐसे ही स्नेह बनाये रखें|


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 7, 2016 at 12:18am

आदरणीय चंद्रेश जी, अपने शीर्षक को सार्थक करती अद्भुत लघुकथा लिखी है आपने. इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई 

Comment by Rahila on March 5, 2016 at 4:04pm
आपकी ये रचना इतनी अद्भुत है कि तारीफ़ के लिये शब्द ही कम मालूम होते है । और जो कुछ कहती इस रचना की शान में वो आदरणीय सुधिजनों द्वारा पहले ही कह दिया गया है । बहुत बधाई इस बेहतरीन रचना के लिये आदरणीय सर जी! सादर
Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on March 5, 2016 at 10:32am

देशप्रेम  ....बेहतरीन प्रस्तुति..बधाई दिल से

भ्रमर ५ 

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 5, 2016 at 10:19am
बहुत बहुत बधाई, आदरणीय चंद्रेश जी , इस भावपूर्ण कथा की काव्यात्मक प्रस्तुति के लिए , सादर।
Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on March 4, 2016 at 11:40pm

आदरणीया कांता रॉय जी, आदरणीय सुनील वर्मा जी भाई, आदरणीय तेजवीर सिंह जी सर, आदरणीया नीता कसार जी, आदरणीय समीर कबीर जी साहब, आप सभी कर तहेदिल से शुक्रिया आप सभी ने रचना को पसंद कर अपनी टिप्पणी से मेरी हौसला अफज़ाई की। निवेदन है कि ऐसे ही स्नेह बनाये रखें| पुनः सादर आभार।

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on March 4, 2016 at 11:37pm

आदरणीय Samar kabeer जी भाई जी, सादर प्रणाम। फांसी के लिये मैंने कहीं यह पढ़ा था कि फांसी मेँ व्यक्ति के गले मेँ रस्सी का फन्दा कस जाता है और उसका साँस मार्ग अवरुद्ध हो जाने से उसका दम घुट जाता है और इस प्रकार उस व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है। इस रचना में यह कल्पना करने का प्रयास किया था कि पहले फेंफडों में हवा भरी, फिर जब फांसी लगी तो साँस मार्ग अवरूद्ध हुआ और हवा अंदर ही रह गयी, म्रत्यु के पश्चात जब फंदा खोला तो उसमें से हवा उपर की तरफ उठ कर मुंह के रास्ते से बाहर आई। आपका सादर आभार आपने रचना का इतनी गहराई से विश्लेषण किया, यदि कोई गलती तो ज़रूर बताएं, मैं आपका कर्ज़दार रहूँगा।

Comment by Samar kabeer on March 4, 2016 at 9:30pm
जनाब चन्द्रेश जी आदाब,भाई हम तो आपके फेन हो गए,ग़ज़ब लिखते हैं आप,इस लघुकथा में बहुत दूर की कोडी लाये हैं आप,पंच लाजवाब है"आज़ादी के मतवाले की ज़बान है अँगरेज़ की नहीं"वाह बहुत ख़ूब, इस बेहतरीन प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
लघुकथा में हम अभी नये हैं इसलिए एक सवाल ज़ेह्न में आया सो पूछ लेते हैं,फाँसी लगने के बाद की जो मन्ज़र कशी की है वो समझ नहीं पा रहा हूं, देखा तो नहीं पर ये सुना है कि गर्दन की हड्डी टूट जाती है और इंसान मर जाता है, आपने कुछ ढेर ज़िंदा दिखाया है,और इसका सबब फेपड़ों में हवा भरना बताया है ?मेरा मार्गदर्शन करते हुए इस बिंदु पर थोडा प्रकाश डालने का कष्ट करें,शुक्रगुज़ार रहूंगा ।
Comment by Nita Kasar on March 4, 2016 at 9:26pm
कथा के एेक एेक शब्द में देशप्रेम के जज़्बातों को उँडेल दिया मन को भीतर तक झकझौर गई कथा के लिये बधाई दिल से आद०चंद्रेश छतलानी जी।
Comment by TEJ VEER SINGH on March 4, 2016 at 5:26pm

 हार्दिक बधाई आदरणीय चंद्रेश जी! बेहतरीन प्रस्तुति!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा सप्तक
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण धामी जी "
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा सप्तक
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं । हार्दिक बधाई।"
18 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"सादर नमस्कार आदरणीय।  रचनाओं पर आपकी टिप्पणियों की भी प्रतीक्षा है।"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी।नमन।।"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय तेजवीर सिंह जी।नमन।।"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"बहुत ही भावपूर्ण रचना। शृद्धा के मेले में अबोध की लीला और वृद्धजन की पीड़ा। मेले में अवसरवादी…"
Friday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"कुंभ मेला - लघुकथा - “दादाजी, मैं थक गया। अब मेरे से नहीं चला जा रहा। थोड़ी देर कहीं बैठ लो।…"
Friday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आदरणीय मनन कुमार सिंह जी, हार्दिक बधाई । उच्च पद से सेवा निवृत एक वरिष्ठ नागरिक की शेष जिंदगी की…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"बढ़िया शीर्षक सहित बढ़िया रचना विषयांतर्गत। हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"रचना पटल पर उपस्थिति और विस्तृत समीक्षात्मक मार्गदर्शक टिप्पणी हेतु हार्दिक धन्यवाद आदरणीय तेजवीर…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"जिजीविषा गंगाधर बाबू के रिटायर हुए कोई लंबा अरसा नहीं गुजरा था।यही दो -ढाई साल पहले सचिवालय की…"
Friday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी साहब जी , इस प्रयोगात्मक लघुकथा से इस गोष्ठी के शुभारंभ हेतु हार्दिक…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service