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ये पेट्रोल डीजल बढ़े या किराया मुझे क्या ( व्यंग ग़ज़ल 'राज')

उड़ाया किसी ने किसी ने कमाया मुझे क्या

कहाँ अब्र बरसा कहाँ धूप छाया मुझे क्या  

 

जहाँ पे खड़ा था वहीँ पे खड़ा हूँ कसम से  

पुराना गया है नया साल आया मुझे क्या

 

सदा ये सलामत रहें पाँव मेरे सफ़र में     

ये पेट्रोल डीजल बढ़े या  किराया मुझे क्या

 

नया साल आया मची हाय तौबा, बला से

कहाँ कुछ करिश्मा खुदा ने दिखाया मुझे क्या?

 

न मेरा मुकद्दर हुआ टस से मस तो फिर क्यूँ

वही गीत गाऊँ उन्होंने जो गाया मुझे क्या

 

मेरे तो कटोरे में सूखे निवाले पड़े हैं  

कहाँ किसने हलवा  या पकवान खाया मुझे क्या

 

वही मेरी झुग्गी पुरानी सी खटिया व चप्पल

वही मेरी सूरत वही मेरा साया मुझे क्या  

 

 

मेरे आम दिल तक न अब ख़ास आवाज जाती

नई हसरतों ने अगर खटखटाया मुझे क्या

.

मौलिक एवं अप्रकाशित 

 

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Comment by TEJ VEER SINGH on January 5, 2016 at 7:43pm

हार्दिक बधाई आदरणीय राजेश जी !बहुत सार गर्भित रचना!

Comment by Samar kabeer on January 5, 2016 at 5:10pm
"मेरे तो कटोरे में सूखे निवाले पड़े हैं"इस मिसरे पर कुछ शंका है,देख लीजियेगा

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 5, 2016 at 2:54pm

आ० सुशील सरना जी ,आपका तहे दिल से बहुत- बहुत शुक्रिया .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 5, 2016 at 2:53pm

आ० शेख़ उस्मानी जी ,आपको ये व्यंगात्मक ग़ज़ल पसंद आई आपका बहुत- बहुत शुक्रिया. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 5, 2016 at 2:52pm

आ० समर कबीर भाई  जी ,आपकी दाद पाकर ग़ज़ल धन्य हुई आपका तहे दिल से आभार आपने ग़ज़ल के अरकान पूछे हैं तो बताना ही पड़ेगा १२२ के पांच बार दोहराव से बह्र बनाई है जो पता नहीं  अरुजानुसार मान्य होगी या नहीं  किन्तु इन भावों को कई तरह से साधने की कोशिश की पर कामयाब न हो सकी रदीफ़ ये ही लेना था सो ये लिखने की हिमाकत की |आपका बहुत- बहुत शुक्रिया सादर 

Comment by Sushil Sarna on January 4, 2016 at 8:27pm

सदा ये सलामत रहें पाँव मेरे सफ़र में
ये पेट्रोल डीजल बढ़े या किराया मुझे क्या

वाह आदरणीया राजेश कुमारी जी नए साल को लक्ष्य कर लिखी इस सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक हार्दिक बधाई।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 4, 2016 at 6:59pm
वााााह....बहुत ख़ूबसूरती से कटाक्ष करते हुए नववर्ष मनाने की औपचारिकता पर व्यंग्य करती पेशकश के लिए तहे दिल बहुत बहुत मुबारकबाद मोहतरमा राजेश कुमारी साहिबा ।
Comment by Samar kabeer on January 4, 2016 at 5:18pm
बहना राजेश कुमारी जी आदाब,बहुत खूबसुरत ग़ज़ल पेश की है आपने,ग़ज़ल की बाण से तन्ज़ के तीर भी ख़ूब चलाये हैं,वाह वाह बहुत ख़ूब,ढेरों दाद के साथ मुबरकबद क़ुबूल फरमाएं !
एक बात और बहना,ग़ज़ल के अरकान नहीं लिखे आपने?

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