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गिरगिट (लघुकथा )राहिला

"ओह, श्रीमती रोहन आप वाकई बहुत भाग्यशाली हैं । कि आप को रोहन जैसा हंसमुख ,जिंदादिल,स्वतंत्र विचारधारा का धनी पति मिला ।ऑफिस की तो जान है,मजाल जो किसी के चेहरे पर उसके रहते उदासी छा जाये।" रात के खाने पर आमंत्रित उनकी महिला मित्र काफ़ी देर से उनकी शान में कसीदे पढ़े जा रही थी ।
"वैसे बुरा ना मानियेगा, अगर रोहन की शादी ना हुई होती तो उसे किसीभी कीमत पर हाथ से नहीं जाने देती । आखिर ऐसे इंसान की पत्नी होना अपने आप में गर्व की बात है ।सच कह रही हूं ना! " वो अब मेरी राय जानने के लिये उत्सुकतावश मेरा मुंह ताक रही थी ।
"हां..सही कह रही हो । मैं भी काफ़ी लंबे समय तक उनके साथ काम कर चुकी हूं । और शादी से पहले मेरा भी यही ख्याल था । "रीमा!साड़ी के पल्लू से घरेलू हिंसा के चिन्ह छिपा एक गहरी सांस छोड़,उठते हुये बोली ।

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मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Rahila on December 27, 2015 at 9:24pm
बहुत आभार प्रिय प्रतिभा दी !आपकी उपस्थित सदा हौसला बढ़ाती है । बहुत शुक्रिया आपका रचना को वक्त देने के लिये ।सादर
Comment by Sushil Sarna on December 24, 2015 at 8:46pm

"रीमा!साड़ी के पल्लू से घरेलू हिंसा के चिन्ह छिपा एक गहरी सांस छोड़,उठते हुये बोली।

आदरणीया राहिला जी इस पांच लाईन में आपने बहुत ही सुंदर ढंग से लघुकथा के मर्म को दर्शाने का सफल प्रयास किया है। एक दर्द जो पल्लू के पीछे कसमसा रहा था उसे आपने मौन शब्द दे दिए। बहुत सुंदर। हार्दिक बधाई कबूल फरमाएं आदरणीया राहिला जी।

Comment by Nita Kasar on December 23, 2015 at 7:16pm
आसपास ही दिख जाते है एेसे दोगले चेहरे वाले लोग घर के लिये अलग चेहरा बाहर के लिये अलग ।चाल चरित्र और चेहरा मानसिकता बयान कर देता है ।आज भी बड़ी तादाद में महिलायें घरेलू हिंसा का शिकार होती है।कथा के ज़रिये आपने जवंलंत मुद्दा उठाया है बधाई स्वीकार करियेगा आद० राहिला जी ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 23, 2015 at 6:44pm

यानि खाने के दांत व् दिखाने के दांत वाली बात हुई सच में किसी के बारे में हम सही राय कायम करने में कई बार धोखा खा जाते हैं बहुत अच्छा शीर्षक दिया है लघु कथा को हार्दिक बधाई |

Comment by Janki wahie on December 22, 2015 at 10:05pm
तहेदिल से शुक्रिया प्रिय राहिला एक सुंदर और सार्थक कथा के लिए
Comment by pratibha pande on December 22, 2015 at 7:08pm

घरेलू हिंसा  समाज का ऐसा पेचीदा मसला  है  जिसको कभी समाज कभी बच्चों की दुहाई देकर अक्सर महिलाऐं दबा देती हैं ,,अच्छी कथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें प्रिय राहिला जी 

Comment by Rahila on December 22, 2015 at 4:54pm
बहुत आभार आदरणीया कांता दी! बहुत देखती हूं ऐसे लोग जो बाहर कुछ और ही कैरेक्टर में दिखाई देते है और घर में पहचानना मुश्किल ।
Comment by kanta roy on December 22, 2015 at 4:28pm
वाह !!! जिंदादिली के मुखौटे को ,जिसे दोहरे चरित्र को जीते लोगों के चेहरे पर से क्या खूब नोंच उतारा है आपने । बधाई आपको इस शानदार लघुकथा के लिये आदरणीया राहिला जी ।

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