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श्याम से तो श्वेत सबका तन हुआ है (ग़ज़ल)

2122 2122 2122

श्याम से तो श्वेत सबका तन हुआ है..
लोभ से संत्रास लेकिन मन हुआ है..

अब कली भौरों से शर्माती नहीं है,
बेशरम अब सारा ही उपवन हुआ है..

खटने में ही बीतती है उम्र सारी,
कोल्हू के इक बैल सा जीवन हुआ है..

दिल के ग़म चहरे तलक आते नहीं क्यूँ,
सोच कर हैरान ये दर्पण हुआ है..

सूखी धरती की दरारें पूछती हैं,
तू भी धोखेबाज़ क्यूँ सावन हुआ है..

आजकल की फिल्मों में तो कुछ नहीं..बस,
'काम' का विस्तार से वर्णन हुआ है..
(मौलिक व अप्रकाशित)
~
~
- जयनित कुमार मेहता "जय"
(अररिया,बिहार)

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Comment by जयनित कुमार मेहता on May 5, 2016 at 6:50pm
उत्साहवर्धन के लिए आप सभी का हार्दिक आभारी हूँ।
Comment by Jayprakash Mishra on October 6, 2015 at 6:22pm
Antim sher me kaam ke kai arth hain. Badhaai verma ji
Comment by Samar kabeer on October 5, 2015 at 11:35pm
जनाब जयनित कुमार वर्मा जी,आदाब,वाह,बहुत ख़ूब,शानदार ग़ज़ल कही है आपने,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें ।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 5, 2015 at 8:58pm

अच्छा प्रयास है .  बढ़िया .

Comment by Sushil Sarna on October 5, 2015 at 7:45pm

अब कली भौरों से शर्माती नहीं है,
बेशरम अब सारा ही उपवन हुआ है..

वाह बहुत सुंदर अशआर … हर शेर की अपनी महक … इस सुंदर ग़ज़ल की प्रस्त्तुति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 4, 2015 at 8:11pm

आ.  जयनित भाई , गज़ल अच्छी हुई है , हार्दिक बधाई !! चेह्रा ( चेहरा ) को वैसे 22 लेना चाहिये , पर आप जैसा उचित समझें ।

कृपया ध्यान दे...

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