212—212—212----212—212—212 |
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वो बदलते नहीं है अगर, तो फ़क़त इतना चल जाएगा |
आप खुद ही बदल जाइए, ये ज़माना बदल जाएगा |
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बात इतनी सी है ये मगर, नासमझ बन के बैठे हुए |
बेटियाँ जो तरक्की करें, ये वतन ही संभल जाएगा |
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इस फ़िजूली से बेहतर यही, कुछ न कुछ आप करते रहें |
काम करते रहें आप तो कोई मकसद निकल जाएगा |
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नर्म लफ़्ज़ों से हो जाते है सख्त़-दिल भी फतह, मान लो |
आप लहजे से बेहतर हुए और पत्थर पिघल जाएगा |
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इल्म क्या है किताबी भला, तज्रिबा जो नहीं आपको |
दो बुजुर्गों से मिल आइये, काम इतने से चल जाएगा |
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जब भी बारिश जरा सी हुई तो उफनती है छोटी नदी |
वो है कमज़र्फ, दौलत न दो वो यक़ीनन मचल जाएगा |
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ख्वाहिशों की हदें क्या बला? जो समझना अगर आपको |
एक बच्चे को पुचकारिये, वो खुशी से उछल जाएगा |
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ये यकीं मान ले ऐ बशर, है ठिकाना घड़ी दो घड़ी |
इस जहां में जो आया था कल, इस जहां से वो कल जाएगा |
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जो तमन्ना के पीछे अगर, दौड़ता ही रहा उम्र भर |
हाथ तेरे न कुछ आएगा औ' खुदा का फज़ल जाएगा |
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एक दर बंद जो हो गया, दूसरा मुन्तज़िर मान लो |
अपनी कोशिश को आवाज़ दो, कोई रस्ता निकल जाएगा |
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इन ख़ुशी के पलों को अगर, जो समेटा नहीं आपने |
ये खबर भी न हो पाएगी, वक़्त यूं ही फिसल जाएगा |
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Comment
आदरणीय मिथिलेश भाई , अच्छी गज़ल कही है , आपको दिली बधाइयाँ गज़ल के लिये ।
एक शब्द के विषय मे सोचियेगा ,
फिज़ूल = व्यर्थ , इसमे बे लगायें ( बे = विरोधी अर्थ देता है ) तो क्या अर्थ निकलेगा ?
इन ख़ुशी के पलों को अगर, जो समेटा नहीं आपने
ये खबर भी न हो पाएगी, वक़्त यूं ही फिसल जाएगा
शानदार भावों को अभिव्यक्त करती शानदार ग़ज़ल … हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय मिथिलेश जी।
आदरणीय मिथिलेश जी
सुन्दर ग़ज़ल हुइ्र है शेर दर शेर दाद कुबूल करें । आपकी सोच में बुजुर्गो के प्रति आदर सम्मान अापकी रचनाओं के माध्यम से दिखाई देता रहता है । ये बहुत ही अच्छी बात है । आाभार आपका इसके लिये ।
ख्वाहिशों की हदें क्या बला? जो समझना अगर आपको
एक बच्चे को पुचकारिये, वो खुशी से उछल जाएगा
बहुत ख़ूबसूरत ऐश'आर हुए हैं आ० भाई मिथिलेश जी हार्दिक बधाई .
आदरणीय मिथिलेश जी, बड़े खूबसूरत अश’आर हुए हैं, दाद कुबूल करें
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