For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : जब तलक हो तुम सलामत

2122       2122    2122    212

जब तलक हो तुम सलामत जिंदगी मेरी रहे

जिस खुशी में तुम रहो खुश वो खुशी मेरी रहे

 

फेर ले रुख चॉंद अपना मै अभी मसरूफ हूँ

वस्‍ल की सारी लताफ़त दिलकशी मेरी रहे

 

खूबसूरत रात है ये खूबसूरत चॉंदनी

चॉंद बेशक हो तुम्‍हारा रोशनी मेरी रहे

 

आशिकी भी है कयामत आबशारे इख्तिलाफ़

राहते जां है वही जो नाखुशी मेरी रहे

 

मैं गलत हूँ या सही ये बात सारी दरगुज़र

चाहती है वो मुझे ये सादगी, मेरी रहे

 

कह गई थी जो मुझे, किस हाल में होगी वफ़ा

ता कयामत दोस्‍ती ये, आपकी मेरी रहे

 

सोचता हूँ मैं जला डालूं खुतूते आशिकी

हश्र में क्‍यूँ  साथ मेरे बेकसी मेरी रहे

 

आपकी है ये नवाजिश आपका लुत्‍फे करम

खुश बयानी की कशिश ले शाइरी मेरी रहे

 

( मौलिक एवं अप्रकाशित )

Views: 686

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 12, 2015 at 1:24pm

आदरणीय रवि जी इस शेर में 'मेरी रहे' रदीफ़ के साथ 'नाखुशी' काफिया जम नहीं पा रहा है. आशिकी माना कि कयामत और  आबशारे इख्तिलाफ़ है लेकिन यही तो मेरी राहते-जां है अब इस पर जमाने की नाखुशी हो तो हो. नाखुशी हमेशा तेरी या उनकी या जमाने की रहे लेकिन आशिकी मेरी रहे .....

आशिकी माना कयामत आबशारे इख्तिलाफ़

राहते जां है मिरी ताजिंदगी मेरी रहे

Comment by Ravi Shukla on August 12, 2015 at 12:48pm

आरणीय मिथिलेश जी

आभार आपका ग़ज़ल पर शिरकत के लिये क्षमा पुन: त्रुटि हो गई इसका खेद है । इसको मूल लेख मे सुधार रहे है

जिस शेर पर चर्चा हुई है उसके समाधान के लिये भी कुछ कहें तो प्रसन्‍नता होगी ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 12, 2015 at 12:33pm

आदरणीय रवि जी, बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद हाज़िर है. 

हश्र में ना साथ मेरे बेकसी मेरी रहे

यदि ना के प्रयोग से बचा जा सके तो बेहतर है क्योंकि उसका वज्न 1 होता ही है बाकि गुनिजन कह ही चुके है. सादर 

Comment by Ravi Shukla on August 12, 2015 at 12:23pm

आरणीय गिरिराज जी और आदरणीया राजेश जी

आपके ग़ज़ल पर आने और इस्‍लाह देने के लिये शुक्रिया

शायद अधिक शेर कहने के मोह में ये शेर बस हो गया सा लगता है किन्‍तु आपकी बात से नये आयाम खुले है हमने भी इस दिशा में सोचा,  आप सत्‍य कह रहे है । इस शेर में मेरी रहे  कामना रूप मे न हो कर अपने होने के रूप को व्‍यक्‍त कर रहा है जिससे रदीफ में फर्क पड़ रहा है । कहना यही चाहा है कि जो मेरी प्रसन्‍नता का कारण है वही उदासी की सबब भी है ये विरोधाभास का भाव अभी सही तरह से अभिव्‍यक्‍त नहीं हो पा रहा है ।

ग़जल में शेर को हटाया भी जा सकता है किन्‍तु ये सरल रास्‍ता होगा हम प्रयास करेंगे और आप की तरह और भी सिद्धहस्‍त हस्‍ताक्षर इस पर अपनी राय देंगे तो रास्‍ता आसान हो जाएगा  । आपका बहुत बहुत आभार अनुग्रह बनाये रखें । प्रतीक्षा में

Comment by Ravi Shukla on August 12, 2015 at 12:14pm

आदरणीय लक्ष्‍मण जी आभार आपका

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 12, 2015 at 11:44am

आ0 रवि भाई, हार्दिक बधाई .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 12, 2015 at 10:43am

बहुत अच्छी ,शानदार ग़ज़ल कही है आपने सभी शेर उम्दा व् स्पष्ट भाव वाले हैं बस इसी शेर पर मैं भी अटकी हूँ जिसपर आ० गिरिराज जी कह चुके हैं इसका भाव स्पष्ट करें तो संशय दूर हो |आपको बहुत बहुत बधाई इस ग़ज़ल पर रवि शुक्ल  जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 12, 2015 at 8:28am

आदरनीय रवि भाई , लाजवाब गज़ल कही है आपने , क्या बात है , हरेक शेर के लिये दिली मुबारक बाद आपको ।

बस इस एक शे र के विषय मे और सोच लीजियेगा - 

आशिकी भी है कयामत आबशारे इख्तिलाफ़

राहते जां है वही जो नाखुशी मेरी रहे

 

इस शेर मेरी रहे मुझे कामना के रूप मे नही लग रहा है , जैसा कि बाक़ी शे र मे है , कहीं ऐसा न हो कि

राहते जां है वही जो नाखुशी मेरी रही ,   व्याकरण सम्मत हो और रदीफ गडबड- हो जाये  या 

राहते जाँ हो वही  जो नाखुशी मेरी रहे  , करना पड़े  , तो भाव मे अंतर आ जाये  , सोच लीजियेगा ,  मै निश्चित तौर पे कुछ कहने मे असमर्थ हूँ ।

 

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा अष्टक (प्रकृति)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। उत्तम दोहे रचे हैं हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छः दोहे (प्रकृति)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। उत्तम दोहे रचे हैं हार्दिक बधाई।"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रस्तुति को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी ।हार्दिक आभार "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion गजल : निभत बा दरद से // सौरभ in the group भोजपुरी साहित्य
"किसी भोजपुरी रचना पर आपकी उपस्थिति और उत्साहवर्द्धन किया जाना मुझे अभिभूत कर रहा है। हार्दिक बधाई,…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहे (प्रकृति)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। उत्तम दोहे रचे हैं हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुन्दर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Shyam Narain Verma replied to Saurabh Pandey's discussion गजल : निभत बा दरद से // सौरभ in the group भोजपुरी साहित्य
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर भोजपुरी ग़ज़ल की प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

गजल : निभत बा दरद से // सौरभ

जवन घाव पाकी उहे दी दवाईनिभत बा दरद से निभे दीं मिताई  बजर लीं भले खून माथा चढ़ावत कइलका कहाई अलाई…See More
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday
Shyam Narain Verma commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर और ज्ञान वर्धक लघुकथा, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service