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ग़ज़ल : जब तलक हो तुम सलामत

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जब तलक हो तुम सलामत जिंदगी मेरी रहे

जिस खुशी में तुम रहो खुश वो खुशी मेरी रहे

 

फेर ले रुख चॉंद अपना मै अभी मसरूफ हूँ

वस्‍ल की सारी लताफ़त दिलकशी मेरी रहे

 

खूबसूरत रात है ये खूबसूरत चॉंदनी

चॉंद बेशक हो तुम्‍हारा रोशनी मेरी रहे

 

आशिकी भी है कयामत आबशारे इख्तिलाफ़

राहते जां है वही जो नाखुशी मेरी रहे

 

मैं गलत हूँ या सही ये बात सारी दरगुज़र

चाहती है वो मुझे ये सादगी, मेरी रहे

 

कह गई थी जो मुझे, किस हाल में होगी वफ़ा

ता कयामत दोस्‍ती ये, आपकी मेरी रहे

 

सोचता हूँ मैं जला डालूं खुतूते आशिकी

हश्र में क्‍यूँ  साथ मेरे बेकसी मेरी रहे

 

आपकी है ये नवाजिश आपका लुत्‍फे करम

खुश बयानी की कशिश ले शाइरी मेरी रहे

 

( मौलिक एवं अप्रकाशित )

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Comment by मिथिलेश वामनकर on August 12, 2015 at 1:24pm

आदरणीय रवि जी इस शेर में 'मेरी रहे' रदीफ़ के साथ 'नाखुशी' काफिया जम नहीं पा रहा है. आशिकी माना कि कयामत और  आबशारे इख्तिलाफ़ है लेकिन यही तो मेरी राहते-जां है अब इस पर जमाने की नाखुशी हो तो हो. नाखुशी हमेशा तेरी या उनकी या जमाने की रहे लेकिन आशिकी मेरी रहे .....

आशिकी माना कयामत आबशारे इख्तिलाफ़

राहते जां है मिरी ताजिंदगी मेरी रहे

Comment by Ravi Shukla on August 12, 2015 at 12:48pm

आरणीय मिथिलेश जी

आभार आपका ग़ज़ल पर शिरकत के लिये क्षमा पुन: त्रुटि हो गई इसका खेद है । इसको मूल लेख मे सुधार रहे है

जिस शेर पर चर्चा हुई है उसके समाधान के लिये भी कुछ कहें तो प्रसन्‍नता होगी ।


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Comment by मिथिलेश वामनकर on August 12, 2015 at 12:33pm

आदरणीय रवि जी, बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद हाज़िर है. 

हश्र में ना साथ मेरे बेकसी मेरी रहे

यदि ना के प्रयोग से बचा जा सके तो बेहतर है क्योंकि उसका वज्न 1 होता ही है बाकि गुनिजन कह ही चुके है. सादर 

Comment by Ravi Shukla on August 12, 2015 at 12:23pm

आरणीय गिरिराज जी और आदरणीया राजेश जी

आपके ग़ज़ल पर आने और इस्‍लाह देने के लिये शुक्रिया

शायद अधिक शेर कहने के मोह में ये शेर बस हो गया सा लगता है किन्‍तु आपकी बात से नये आयाम खुले है हमने भी इस दिशा में सोचा,  आप सत्‍य कह रहे है । इस शेर में मेरी रहे  कामना रूप मे न हो कर अपने होने के रूप को व्‍यक्‍त कर रहा है जिससे रदीफ में फर्क पड़ रहा है । कहना यही चाहा है कि जो मेरी प्रसन्‍नता का कारण है वही उदासी की सबब भी है ये विरोधाभास का भाव अभी सही तरह से अभिव्‍यक्‍त नहीं हो पा रहा है ।

ग़जल में शेर को हटाया भी जा सकता है किन्‍तु ये सरल रास्‍ता होगा हम प्रयास करेंगे और आप की तरह और भी सिद्धहस्‍त हस्‍ताक्षर इस पर अपनी राय देंगे तो रास्‍ता आसान हो जाएगा  । आपका बहुत बहुत आभार अनुग्रह बनाये रखें । प्रतीक्षा में

Comment by Ravi Shukla on August 12, 2015 at 12:14pm

आदरणीय लक्ष्‍मण जी आभार आपका

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 12, 2015 at 11:44am

आ0 रवि भाई, हार्दिक बधाई .


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Comment by rajesh kumari on August 12, 2015 at 10:43am

बहुत अच्छी ,शानदार ग़ज़ल कही है आपने सभी शेर उम्दा व् स्पष्ट भाव वाले हैं बस इसी शेर पर मैं भी अटकी हूँ जिसपर आ० गिरिराज जी कह चुके हैं इसका भाव स्पष्ट करें तो संशय दूर हो |आपको बहुत बहुत बधाई इस ग़ज़ल पर रवि शुक्ल  जी 


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Comment by गिरिराज भंडारी on August 12, 2015 at 8:28am

आदरनीय रवि भाई , लाजवाब गज़ल कही है आपने , क्या बात है , हरेक शेर के लिये दिली मुबारक बाद आपको ।

बस इस एक शे र के विषय मे और सोच लीजियेगा - 

आशिकी भी है कयामत आबशारे इख्तिलाफ़

राहते जां है वही जो नाखुशी मेरी रहे

 

इस शेर मेरी रहे मुझे कामना के रूप मे नही लग रहा है , जैसा कि बाक़ी शे र मे है , कहीं ऐसा न हो कि

राहते जां है वही जो नाखुशी मेरी रही ,   व्याकरण सम्मत हो और रदीफ गडबड- हो जाये  या 

राहते जाँ हो वही  जो नाखुशी मेरी रहे  , करना पड़े  , तो भाव मे अंतर आ जाये  , सोच लीजियेगा ,  मै निश्चित तौर पे कुछ कहने मे असमर्थ हूँ ।

 

 

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