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सरकारी खर्चे पर होटल के कमरे में बैठे बैठे साहब ने एक तंदूरी मुर्गा खत्म किया। फिर पानी पीकर डकार मारते हुए किसी बड़े लेखक का अत्यन्त मार्मिक उपन्यास पढ़ने लगे। उपन्यास में गरीबों की दशा का जिस तरह वर्णन किया गया था वह पढ़ते पढ़ते साहब का पहले से भरा पेट और फूलने लगा। अन्त में जब साहब से पेट दर्द सहन नहीं हुआ तो वो उठकर अपनी मेज पर गए। दराज से अपनी डायरी निकाली और एक सादा पन्ना खोलकर शब्दों की उल्टी करने लगे।

पेट खाली हो जाने के बाद उन्हें असीम आनन्द की अनुभूति हुई। उन्होंने एसी का तापमान अठारह डिग्री किया और कम्बल तान कर लेट गए। लेटे लेटे वो सोचने लगे कि क्या शानदार लघुकथा हुई है। इसे पढ़कर प्रदेश की वामपंथी सरकार मुझे अवश्य ही कोई महत्वपूर्ण पद दे देगी। सोचते सोचते उन्हें नींद आ गई और वो सो गए।

कमरे की हवा से जब शब्दों की दुर्गन्ध सही नहीं गई तो उसने अपना सारा दम लगाकर डायरी का पन्ना पलट दिया।

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(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 27, 2015 at 11:52am
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय विजय निकोर जी
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 27, 2015 at 11:52am
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय संतलाल जी
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 27, 2015 at 11:51am
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय विनोद जी
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 27, 2015 at 11:51am
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सालिम साहब
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 27, 2015 at 11:51am
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय कान्ता राय जी
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 27, 2015 at 11:50am
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय विजय शंकर जी
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 27, 2015 at 11:50am
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय मिथिलेश जी
Comment by vijay nikore on July 26, 2015 at 4:32pm

 बहुत ही खूबसूरत लघुकथा। हार्दिक बधाई।

Comment by Santlal Karun on July 25, 2015 at 7:52pm

बेहतरीन लघुकथा ! ओबीओ पर लघु कथाओं की आमद बढ़ी ज़रूर है, लेकिन अधिकांश लिखने और पढ़ने वाले का समय बर्बाद करने वाली होती हैं | यह बात और है कि झूठी वाह-वाही वाली टिप्पणियों के कारण ऐसी लघु कथाओं और लघु कथाकारों में सुधार-संस्कार भी नहीं होता, उल्टे वे खुशफहमी में शब्दों की लाश पाटने में लगे हैं | इस तथ्य के विपरीत यह लघु कथा पढ़ने से काफी सुकून मिला |आ. धर्मेन्द्र जी, कथ्य, शिल्प और सन्देश के व्यवस्थित ताने-बाने की इस रचना के लिए हार्दिक साधुवाद !

Comment by विनोद खनगवाल on July 25, 2015 at 4:06pm

आदरणीय धर्मेंद्र कुमार जी, लघुकथा बहुत कुछ सोचने पर विवश करती है देश के हालात ऐसे ही हैं। बहुत अच्छी लगी आपकी कथा। बधाई स्वीकार करें।

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