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बड़ी खूबसूरत हवालात होगी (फिल बदीह ग़ज़ल(राज)

122 122 122 122

 

 तुम्हारी समझ से वो सौगात होगी

,मगर मेरी नजरों में खैरात होगी

 

मुझे चाहिए मेहनतों के  निवाले,

जिये रहमतों पर तेरी जात होगी.

 

न जाने कहाँ अब मुलाकात होगी

,जहाँ आमने सामने बात होगी

 

घटाएँ हिमालय के रुखसार चूमे,

कहीं झूम कर आज बरसात होगी

 

मुहब्बत हमारी जहाँ कैद हो वो 

,बड़ी खूबसूरत हवालात होगी

 

हुए कहकशाँ में नए दीप रोशन

,चली आज चंदा की बारात होगी

 

बढ़ो तुम जरा से बढ़ें हम जरा से,

 मिलन की कहीं से शरुआत होगी

 

मुहब्बत की शतरंज में दिल मन बराबर

, बड़ी दिलकशीं आज शय मात होगी

----------------राजेश कुमारी 'राज '

(

 

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Comment by Pari M Shlok on July 9, 2015 at 3:18pm
मुझे चाहिए मेहनतों के निवाले,

जिये रहमतों पर तेरी जात होगी.

न जाने कहाँ अब मुलाकात होगी

,जहाँ आमने सामने बात होगी



घटाएँ हिमालय के रुखसार चूमे,

कहीं झूम कर आज बरसात होगी

बहुत खूबसूरत ग़ज़ल बधाई
Comment by विनय कुमार on July 9, 2015 at 1:18pm

बहुत शानदार ग़ज़ल हुई है आदरणीया राजेश कुमारी जी // बढ़ो तुम जरा से बढ़ें हम जरा से,
मिलन की कहीं से शरुआत होगी//
वाह , वाह , बधाई इस रचना के लिए..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 9, 2015 at 12:00pm

आदरणीया राजेश दीदी शानदार ग़ज़ल हुई है ....दिल से दाद कुबूल फरमाएं 

घटाएँ हिमालय के रुखसार चूमे,

कहीं झूम कर आज बरसात होगी.......... वाह वाह 

Comment by Rahul Dangi Panchal on July 9, 2015 at 10:42am
बहुत ही सुन्दर गजल हुई है आदरणीय । बधाई स्वीकार करें
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 9, 2015 at 10:28am
बड़ी ख़ूबसूरत ग़ज़ल हुई है आदरणीया, दिली दाद कुबूल करें। "मिलन की कहीं से शरुआत होगी" मिसरे में मेरे विचार से ‘तो’ छूट गया है। सादर

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