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बह गये तूफान में वो जा किनारे से लगे- ग़ज़ल

2122/ 2122/ 2122/ 212

बह गये तूफान में वो जा किनारे से लगे

लड़ने वाले ही मगर सब बेसहारे से लगे

 

हार के बाहर हुये वो चैन की अब साँस लें

जीतने की जो कहें मुझको वो हारे से लगे

 

बारहा मेरे करीब आकर ठहर जाते हैं यूँ

ये हवादिस मेरी किस्मत के इशारे से लगे

 

लुट गया सामां सफर में हर मुसाफिर का यहाँ

लोग भी बेआस बेबस गम के मारे से लगे

 

कागज़ों पर है नुमायाँ हाले दिल मेरा “शकूर”

राख से कुछ हर्फ़ कुछ उनमें शरारे से लगे

 

मौलिक व अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 15, 2015 at 7:03am

आदरणीय श्यामनारायणजी आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 15, 2015 at 7:02am

आदरणीय नरेन्द्र सिंह चौहान जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 15, 2015 at 7:01am

आदरणीया सविता मिश्रा जी आपका बहुत बहुत शु्क्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 15, 2015 at 7:01am

जनाब समर कबीर साहब आप जैसे ग़ज़लगो तारीफ पाना उत्साह का कारण होता है आपका तहेदिल से शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 15, 2015 at 6:59am

आदरणीय गिरिराज सर आपका तहदिल से शुक्रिया। आपके सुझावों का सदैव स्वागत है 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 15, 2015 at 6:58am

आदरणीय डॉ विजय शंकर सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 15, 2015 at 6:58am

आदरणीय डॉ विजय शंकर सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by दिनेश कुमार on April 14, 2015 at 6:58pm
कमाल किया है आदरणीय शिज्जू भाई। वाह वाह

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 14, 2015 at 5:01pm

वाह शिज्जू भाई वाह, अच्छी ग़ज़ल हुई है, दाद देता हूँ.

Comment by Nidhi Agrawal on April 14, 2015 at 2:48pm

बढियां ग़ज़ल हुई आदरणीय शिज्जू सर !

बारहा मेरे करीब आकर ठहर जाते हैं यूँ

ये हवादिस मेरी किस्मत के इशारे से लगे   - बहुत सुन्दर शेर हुआ है 

कागज़ों पर है नुमायाँ हाले दिल मेरा “शकूर”

राख से कुछ हर्फ़ कुछ उनमें शरारे से लगे - वाह वाह और बस वाह ! लाजवाब 

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