22-22-22-22-22-2 जो रह-रहकर इस सीने में उठता है |
तेरा मेरा दर्द पुराना किस्सा है |
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उनकी आँखों से उतरे हर आँसू से |
ग़ज़लों को भी गीला होते देखा है |
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खौफ़जदा हूँ अख़बारों की ख़बरों से |
आज हुकूमत ने जाने क्या सोचा है |
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अँधियारा क्यूं कायम रहता है दिल में |
तल्ख़ सवालों ने सूरज को घेरा है |
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चार किताबें मेरे हिस्से की दे दो |
आखिर इक लड़की ने भी कुछ बोला है |
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झरते पत्तों ने आखिर ये बतलाया |
हर एक शज़र को बूढ़ा होना पड़ता है |
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इस मौसम से बात हुई जब आहिस्ता |
इस मौसम के साथ ज़माना रोता है |
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उस घटना के सीने पर तारीख लिखी |
अब सीने से जर्द लहू सा बहता है |
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पायल की झंकार सुनाकर बातों में |
बातों-बातों में शमसीर गलाता है |
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देहाड़ी को आज चला ले मोबाइल |
मुस्तकबिल की खातिर ये भी अच्छा है |
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Comment
मुझको कैसे गजल लिखना आयेगा
बतला देते शायर यह भी अच्छा है गुस्ताखी माफ़!
खौफ़जदा हूँ अख़बारों की ख़बरों से |
आज हुकूमत ने जाने क्या सोचा है.....बहुत बढ़िया ग़ज़ल ,आदरणीय मिथिलेश भाई , बहुत बधाई आपको ! सादर |
अँधियारा क्यूं कायम रहता है दिल में |
तल्ख़ सवालों ने सूरज को घेरा है बहुत बढ़िया आदरणीय |
आदरणीय मिथिलेश भाई , गज़ल बहुत सुन्दर हुई है , आपको हार्दिक बधाइयाँ ।
आ. समर भाई जी से मै भी सहमत हूँ , वैसे एक शे र और कमसे कम मै नही समझ पाया , लेकिन ये मेरी नासमझी भी हो सकती है -
चार किताबें मेरे हिस्से की दे दो |
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आखिर इक लड़की ने भी कुछ बोला है ************************************ झरते पत्तों ने आखिर ये बतलाया हर एक शज़र को बूढ़ा होना पड़ता है
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आ० वामनकर जी
बहुत उम्दा i समीर कबीर जी की तरह मुझे भी शमशीर गलाना समझ में नहीं आया . कृपया मार्ग दर्शन करें . सादर .
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