बनके अश्रु जब टपकेगी दिल की बेचैनी
मोहब्बत है तुझे हमसे फिर मान लूँगा मैं |
बयां कर न कर पढ़ के चेहरे की हालत
जरुरत है तुझे मेरी फिर जान लूँगा मैं |
जाके मिल गयी तुम गर सितारों में
देख चमकने की अदा फिर पहचान लूँगा मैं |
पकड़ हाथों में हाथ बनाके दिल की रानी
जहाँ कोई न हो दुश्मन फिर जहान लूँगा मैं |
सुनहरे केश और आँखों पे पलकों का ज़ेबा
बनाके तुझे भेजा उसका फिर एहसान लूँगा मैं |
बुलावा आ गया तेरा गर मुझ से पहले
रख के गिरवी अपनी जाँ तुम्हें फिर माँग लूँगा मैं |||
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"मौलिक व अप्रकाशित "
Comment
बनके अश्रु जब टपकेगी दिल की बेचैनी
मोहब्बत है तुझे हमसे फिर मान लूँगा मैं |
सुन्दर maharshi भाई!!बधाई!
आ. गोपाल नारायण जी आपको गजल पसंद आयी .आपका आभार |
प्रिय महर्षि
आपने अच्छी गजल कही i आख़िरी शेर ने तो गजल में जान ही फूंक दी i सस्नेह i
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