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एक तरही ग़ज़ल - होली है हुलासों की // --सौरभ

221 1222   221 1222

चुपचाप अगर तुमसे अरमान जता दूँ तो !
कितना हूँ ज़रूरी मैं, अहसास करा दूँ तो !
 
संकेत न समझोगी.. अल्हड़ है उमर, फिर भी..
फागुन का सही मतलब चुपके से बता दूँ तो
 
ये होंठ बदन बाहें रुख़सार बसंती हैं..
मैं रंग मुहब्बत का थोड़ा सा लगा दूँ तो ..?
 
तुम आँख दिखाओ पर होली है हुलासों की
मेरा है असर तुम पर.. ये शोर मचा दूँ तो !
 
इक चोर नज़र उसकी उलझी है दुपट्टे में
उस मीन पियासी को कुछ बूँद पिला दूँ तो !
 
जब रात गयी उठ कर कुछ बोल दिखे बिखरे
बिस्तर से उठा उनके अनुवाद सुना दूँ तो !!
 
मौसम के इशारे मैं, हाँ ! खूब समझता हूँ
हर ढंग निभाऊँगा, कुछ फ़र्ज़ निभा दूँ तो..
***********
--सौरभ
(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment by maharshi tripathi on February 26, 2015 at 9:30pm

मौसम के इशारे मैं, हाँ ! खूब समझता हूँ
हर ढंग निभाऊँगा, कुछ फ़र्ज़ निभा दूँ तो..,,,,,,,इन पंक्तियों पर हार्दिक बधाई आ. सौरभ सर|

Comment by Hari Prakash Dubey on February 26, 2015 at 8:46pm

आदरणीय सौरभ पाण्डेय सर बहुत ही शानदार रचना है एक एक शब्द कमाल है / जब रात गयी उठ कर कुछ बोल दिखे बिखरे

बिस्तर से उठा उनके अनुवाद सुना दूँ तो !! // गज़ब ...

आनंद आ गया सर ,हार्दिक बधाई ! सादर 

Comment by umesh katara on February 26, 2015 at 8:36pm

वाहहह वाहहहह सर

Comment by Sushil Sarna on February 26, 2015 at 7:53pm

वाह आदरणीय सौरभ जी वाह  … नहीं जानते की होली के रंगों का असर कब और कैसा होगा मगर होली की शोखियों में डूबी इस रंगीन ग़ज़ल की रंगीन छटा  तो अपनी रंगीनी में हर पाठक को भिगो रही है। प्रस्तुत ग़ज़ल का हर शे'र शोख रंगों से लबरेज़ है। इस शानदार प्रस्तुत्ति पर आपको हार्दिक हार्दिक बधाई और होली मुबारक।  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 26, 2015 at 6:56pm

होली से अगर पहले बेबाक खुमारी है

होली में न जाने क्या रंगत हो बता दूँ तो ???:-)))

बड़ी रंगीन ग़ज़ल लिखी है आदरणीय बस और क्या कहूँ बस एक शब्द ---सुभानल्लाह... 

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 26, 2015 at 6:33pm

आदरणीय सौरभ सर, उम्दा ग़ज़ल हुई है। एक एक शेर पर दिल से दाद कुबूल फरमाएं। सभी अशआर कमाल हुए है और सीधा दिल में उतरते है। एक शेर ने मीठी मीठी गुदगुदी भी की और झूम गया इसे पढ़कर-
 
संकेत न समझोगी.. अल्हड़ है उमर, फिर भी..
फागुन का सही मतलब चुपके से बता दूँ तो

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