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सत्य की लम्बी उमर हो - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

2122     2122

***************
पाप   का  अवसान  मागूँ
पुण्य  का  उत्थान   मागूँ
**
सत्य  की  लम्बी उमर हो
झूठ  को  विषपान   मागूँ
**
व्यर्थ   है  आकाश  होना
सिर्फ  लधु  पहचान  मागूँ
**
राजपथ  की   राह   नीरस
पथ  सदा  अनजान  मागूँ
**
स्वर्ण   देने   की  न  सोचो
मैं तो  बस  खलिहान मागूँ
**
कोयलों   का   वंश   फूले
आज  यह  वरदान   मागूँ
**
साथ ही पर  काक के हित
इक  मधुर  सा गान मागूँ
**
मिल गए  नवरात  मुझको
उसके हित  रमजान  मागूँ
**
भूल  निश्चित  मानवों  से
इसलिए    अवदान   मागूँ
**
मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by gumnaam pithoragarhi on February 23, 2015 at 6:57pm
*
मिल गए नवरात मुझको
उसके हित रमजान मागूँ

सत्य की लम्बी उमर हो
झूठ को विषपान मागूँ

व्यर्थ है आकाश होना
सिर्फ लधु पहचान मागूँ

वाह सर जी खूब ग़ज़ल कही है बधाई ................
Comment by maharshi tripathi on February 23, 2015 at 5:09pm

अत्यंतसुन्दर पंक्तियाँ आ, धामी जी ,,,आपको हार्दिक बधाई |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 23, 2015 at 3:14pm

राजपथ  की   राह   नीरस
पथ  सदा  अनजान  मागू    -- लाजवाब गज़ल कही , हार्दिक बधाइयाँ , आ. लक्ष्मण भाई

Comment by Satyanarayan Singh on February 23, 2015 at 3:06pm

इस ग़ज़ल के माध्यम से  आपने जिन पुनीत आकांक्षाओं को आपने स्वर दिया है निश्चित ही आप बधाई के पात्र है मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें आ. धामी जी 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 23, 2015 at 2:59pm

 आ 0 धामी जी

अति सुन्दर हिंदी-गजल है i बहुत उम्दा i

Comment by Neeraj Nishchal on February 23, 2015 at 12:47pm
बहुत ही सुंदर रचना हुयी है आदरणीय लक्ष्मण धामी जी , एक एक पंक्ति मेँ अद्भुत जीवन दर्शन छुपा है , आप की इस भाव दशा को मेरा आत्मिक नमन ।

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