For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तुम चलाओ गैंती-फावड़ा 
काटो पत्थर, बनाओ नाली 
दिन है तो सूरज को घड़ी मानो 
और रात है तो गिनते रहो एक-एक प्रहर
कुत्ते कब भौंके 
सियार कब चीखे
मुर्गे ने कब बांग दी 
यही है तुम्हारी नियति....

तुम चलाओ छेनी-हथौड़ी 
तुम्हारे लिए बन नहीं सकतीं 
ऐसी यांत्रिक घड़ियाँ 
जिनमे काम के घंटों का हिसाब हो 
और आराम के पल का ज़िक्र हो...

तुम लिखो कविता-कहानी 
फट जाए चाहे 
माथे की उभरी नसें 
फूट जाए ललाई आँखें 
लेकिन होना चाहिए ऐसी अभिव्यक्ति 
कि एकदम भोगा हुआ यथार्थ...

तुम्हे देखकर क्यों है ऐसा लगता 
कि कितनी बेताबी से तुम 
करते आ रहे हो प्रतीक्षा 
अपने रिटायर्मेंट की 
या मृत्यु की...

.

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 593

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 15, 2015 at 8:30pm

आदरणीय अनवर सुहैलजी, एक अरसे बाद आपकी कोई सशक्त रचना पढ़ी है. दिल से बधाई स्वीकार करें.  
हार्दिक शुभकामनाएँ

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on February 26, 2015 at 5:01pm

तुम चलाओ गैंती-फावड़ा 
काटो पत्थर, बनाओ नाली 
दिन है तो सूरज को घड़ी मानो 
और रात है तो गिनते रहो एक-एक प्रहर
कुत्ते कब भौंके 
सियार कब चीखे
मुर्गे ने कब बांग दी 
यही है तुम्हारी नियति....

तुम चलाओ छेनी-हथौड़ी 
तुम्हारे लिए बन नहीं सकतीं 
ऐसी यांत्रिक घड़ियाँ 
जिनमे काम के घंटों का हिसाब हो 
और आराम के पल का ज़िक्र हो...

बहुत दिनों बाद इतनी सार्थक कविता पढ़ी...मजलूमों को सन्देश  देती और उनकी आवाज़ उठाती..आदरणीय अनवर जी प्रणाम स्वीकार करें!

Comment by anwar suhail on February 18, 2015 at 7:35pm

शुक्रिया परम-स्नेहीजन...मेरे विचार आप सभी को पसंद आये...एक बार फिर शुक्रिया 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 18, 2015 at 12:05pm

आदरणीय अनवर सुहेल जी ,बहुत गूढ़ बात कहती बेहद सुन्दर प्रस्तुति हुई  है , बधाई l

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 18, 2015 at 11:07am
संरचना में लगे शिल्पी रिटायरमेंट या मृत्यु भी जानते हैं, उसकी प्रतीक्षा भी करते हैं ?
रोचक, बधाई ,सादर।
Comment by Pari M Shlok on February 18, 2015 at 10:17am
तुम लिखो कविता-कहानी
फट जाए चाहे
माथे की उभरी नसें
फूट जाए ललाई आँखें
लेकिन होना चाहिए ऐसी अभिव्यक्ति
कि एकदम भोगा हुआ यथार्थ...

बेहद सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति
Comment by Hari Prakash Dubey on February 17, 2015 at 11:34am

बहुत गूढ़ बात कही है आदरणीय अनवर सुहेल जी

//तुम्हे देखकर क्यों है ऐसा लगता 
कि कितनी बेताबी से तुम 
करते आ रहे हो प्रतीक्षा 
अपने रिटायर्मेंट की 
या मृत्यु की// सुन्दर रचना पर बधाई स्वीकार करें ! सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
3 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
3 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
3 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सादर नमस्कार आ. ऋचा जी। उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
3 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। इस प्रयास की सराहना हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ।  1.…"
3 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, सादर अभिवादन! आपकी विस्तृत टिप्पणी और सुझावों के लिए हृदय से आभारी हूँ। इस सन्दर्भ…"
3 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की इस्लाह क़ाबिले ग़ौर…"
4 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी बहुत शुक्रिया आपका संज्ञान हेतु और हौसला अफ़ज़ाई के लिए  सादर"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मोहतरम बागपतवी साहिब, गौर फरमाएँ ले के घर से जो निकलते थे जुनूँ की मशअल इस ज़माने में वो…"
5 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी आदाब, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही है आपने मुबारकबाद पेश करता…"
5 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आ० अमित जी…"
5 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आदरणीय…"
7 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service