221 2121 1221 2 2
रख ले चराग़ साथ में, शम्सो क़मर नहीं --
रहजन बिना यहाँ पे कोई रहगुज़र नहीं
शम्सो क़मर - चाँद सूरज
तेरी लगाई आग की तुझको ख़बर नहीं
सब ख़ाक हो चुका यहाँ कोई शरर नहीं
रो ले अगर, तेरा बिना रोये गुज़र नहीं
लेकिन ये सच है, आँसुओं में अब असर नहीं
सब कुछ वही है इस जहाँ में , बस तेरे बिना
मेरी वो शाम गुम हुई , वैसी सहर नहीं
मिल जायें बदलियाँ तो वो सूरज को ढ़ाँक दें
लेकिन, अकेले भिड़ पड़े ये कारगर नहीं
कोशिश तो की परिंदों ने ज़िंदाँ को तोड़ दें
धोखा परों ने दे दिया, कोई ज़रर नहीं
ज़िंदाँ – कारागार , ज़रर – नुक्सान
क्यों इब्न ही रहे किन्हीं आँखों का नूर अब
क्यों बिंत कोई, आज भी नूरे नज़र नहीं
इब्न – बेटा , बिंत – बेटी
दुश्वारियों ने खुद ही जिन्हें हौसला दिया
वो क्यूँ करे गिला कि कोई हमसफर नहीं
हर चीज़ रंग रोज़ बदलती रही है , तब
ये जान ले, कि ग़म-खुशी भी उम्र भर नहीं
हर लम्हा कह रहा है, यही रोज़ बस हमें
“सामान सौ बरस के हैं कल की खबर नहीं"
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय गिरिराज सर बहुत ही बेहतरीन और उम्दा ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई. ये शेर तो कमाल हुए है-
तेरी लगाई आग की तुझको ख़बर नहीं
सब ख़ाक हो चुका यहाँ कोई शरर नहीं
रो ले अगर, तेरा बिना रोये गुज़र नहीं
लेकिन ये सच है, आँसुओं में अब असर नहीं
सब कुछ वही है इस जहाँ में , बस तेरे बिना
मेरी वो शाम गुम हुई , वैसी सहर नहीं
मिल जायें बदलियाँ तो वो सूरज को ढ़ाँक दें
लेकिन, अकेले भिड़ पड़े ये कारगर नहीं
आदरणीय गिरिराज सर बहुत ही सुन्दर ,आप जैसे लोगों से ही प्रेरणा मिलती है , बधाई स्वीकार करें संपूर्ण रचना पर ...पर ये शेर दिल मैं अटक गया .................
कोशिश तो की परिंदों ने ज़िंदाँ को तोड़ दें
धोखा परों ने दे दिया, कोई ज़रर नहीं........लाजवाब ! सादर
बहुत सुन्दर गजल आ, गिरिराज जी |
हर चीज़ बदलती यहाँ है रोज़ रोज़, तब
ये जान ले, कि ग़म-खुशी भी उम्र भर नहीं......वाह! बहुत खूब, दिली बधाई आदरणीय गिरिराज जी.
आदरणीय खुर्शीद भाई , बह्र के विषय मे इरशाद गुप को मेसेज कर दिया है , शायद वो भी सुधार लें । मै अभी सुधार के लिख रहा हूँ ।
आपका आभार ।
आदरणीय खुर्शीद भाई , आपको गज़ल के कुछ अशआर पसन्द आये तो गज़ल कहना सार्थक हो गया । आपका तहे दिल से शुक्रिया
आदरणीय , ये मिसरा, फेसबुक के इरशाद ग्रुप मे दिया हुआ है, मिसरे की तक्तीअ मैने नहीं की है, वहाँ निम्न तक्तीअ की गई है --
◘मिसरा- " सामान सौ बरस के हैं कल की खबर नहीं"
◘ काफिये- असर, शजर, बशर, इधर, उधर, नज़र ....इत्यादि
◘रदीफ़ - नहीं
◘ तख्ती - 22121212 221212
आदरणीय शिज्जु भाई से फोन मे बात हुई थी उनका भी वही कहना है , जो आप कह रहे हैं । मुझे आप पर और आपके ज्ञान पर पू यक़ीन है , परंतु इसे मुझे इरसाद ग्रुप मे पोस्ट करना है , तो उनकी तक्तीअ को सही मान के ही पोस्ट करना पड़ेग़ा , 221--2121--1221--212 ' के अनुसार कुछ शे र सुधारना पडेगा , वो मै बाद में कर लूंगा । आशा है आप बात समझ लेंगे ।
आदरणीय श्याम नारायण भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका बहुत बहुत आभार ।
रख ले चराग़ साथ में, शम्सो क़मर नहीं --
रहजन बिना यहाँ पे कोई रहगुज़र नहीं
कोशिश तो की परिंदों ने ज़िंदाँ को तोड़ दें
धोखा परों ने दे दिया, कोई ज़रर नहीं
आदरणीय गिरिराज सर बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल हुई है बधाई स्वीकार करें |इन अशहार पर ढेरों दाद क़बूल फरमावें |
दुश्वारियों ने खुद ही जिनको हौसला दिया
वो क्यूँ करे गिला कि कोई हमसफर नहीं
हर चीज़ बदलती यहाँ है रोज़ रोज़, तब
ये जान ले, कि ग़म-खुशी भी उम्र भर नहीं
क्षमापार्थी हूं किंतु अकिंचन की तुच्छ जानकारी में तरही मिसरे की बह्र '221--2121--1221--212 ' है |इसी बह्र पर "दुनिया करे सवाल तो हम क्या ज़वाब दें " | शायद दोनों मिलती जुलती बहरें हों और मैं दिग्भर्मित हो रहा होऊं |मार्गदर्शन की कृपा करें |कृपया इसे अनुज की धृष्टता न समझें |आपका स्नेह मेरे लिए अनमोल है |सादर अभिनन्दन |
बहुत खूब ! इस सुंदर गजल हेतु बधाई स्वीकारें । |
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