मरुस्थलीय मृगतृष्णा
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तुम कहती हो
प्रतिभाशाली बनो
पर मैं असक्त
प्रतिभाओं का बोझ
उठा नहीं सकता
मरुस्थलीय मृगतृष्णा के
पीछे भाग नहीं सकता
जिस शून्यता की अवस्था में
जी रहा हूँ , क्या उसमे
तुमको पा नहीं सकता ?
मुझ शुन्य को अब
तुम्हारा ही सहारा है
तुमसे जुड़कर ही मेरा
कोई आधार बनेगा
यह गतिहीन जीवन
कुछ आगे बढेगा
मेरे हृदय के पवित्र भावों को
गुणों-अवगुणों से मत तौलो
मेरे समर्पण को स्वीकार करो
अगर हो सके तो मुझे प्यार करो !!
© हरि प्रकाश दुबे
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी ,आपकी उत्त्साह वर्धक प्रतिक्रिया का हार्दिक अभिनन्दन है , सादर !
'मुझ शुन्य को अब
तुम्हारा ही सहारा है
तुमसे जुड़कर ही मेरा
कोई आधार बनेगा
यह गतिहीन जीवन
कुछ आगे बढेगा'
दुबे भाई ,टंकन में कुछ गलतियाँ प्रायःसब से ही रह जाती हैं उसकी कोई बात नहीं ,बस्तुतः भाव आत्मिक समर्पण को बेताब हैं,सुंदर कोटिशः बधाईI
पर मैं असक्त
प्रतिभाओं का बोझ
उठा नहीं सकता
मरुस्थलीय मृगतृष्णा के
पीछे भाग नहीं सकता
जिस शून्यता की अवस्था में
जी रहा हूँ , क्या उसमे
तुमको पा नहीं सकता ?
आदरणीय हरिप्रकाश जी सुन्दर भाव है |प्रेम के लिए समर्पण ही एकमात्र शर्त होनी चाहिय |सादर अभिनन्दन
मेरे हृदय के पवित्र भावों को
गुणों-अवगुणों से मत तौलो
मेरे समर्पण को स्वीकार करो
अगर हो सके तो मुझे प्यार करो !............बहुत खूब........
तुमसे जुड़कर ही मेरा
कोई आधार बनेगा
यह गतिहीन जीवन
कुछ आगे बढेगा
सुन्दर पंक्तियाँ ... हार्दिक बधाई स्वीकार करे आदरणीय हरि प्रकाश जी इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए
मेरे हृदय के पवित्र भावों को
गुणों-अवगुणों से मत तौलो
मेरे समर्पण को स्वीकार करो
अगर हो सके तो मुझे प्यार करो !!------ vaah vaah vaah
आपने कविता को पढ़ कर सार्थक प्रतिक्रिया दी उसके लिए हार्दिक आभारी हूँ आपका धन्यवाद आ. महर्षि त्रिपाठी जी !
मेरे हृदय के पवित्र भावों को
गुणों-अवगुणों से मत तौलो
मेरे समर्पण को स्वीकार करो
अगर हो सके तो मुझे प्यार करो !!
बेहद उम्दा लाइन ,,,,,,आ. दुबे जी ,,,,
बधाई हो |
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