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किसी खामोश बैठी शायरी से : ग़ज़ल (मिथिलेश वामनकर)

1222-1222-122

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अदावत क्या करे कोई किसी से
परेशां हर कोई जब ज़िन्दगी से

अकीदत आपकी सूरज से लेकिन
हमारी   बेरुखी  है  रौशनी  से

पसीना लफ्ज़ बनकर बह रहा है
किसी  खामोश  बैठी शायरी से

अता जिसको कभी शोहरत नहीं है
कहाँ  मिलते  है ऐसे  आदमी से

सदा सूरज के आगे क्यों सिमटती
किसी  ने  प्रश्न  पूछा चांदनी से

हुकूमत जुल्म किस पर कर रही है
सभी  खामोश  अपनी  बेबसी  से

नहीं  है  कौन  तेरा  तिश्नकामी
बचा  है  कौन  तेरी  तिश्नगी से

जरा मिथिलेश अब दिल से निकालो
मिटाया  नाम  जिसका डायरी  से

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(मौलिक व अप्रकाशित) -   © मिथिलेश वामनकर 
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Comment

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Comment by Shyam Narain Verma on December 24, 2014 at 2:11pm

बहुत लाजवाब, बधाई , सादर ।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 24, 2014 at 1:11pm

मिथिलेश जी

बहुत सुन्दर

अदावत क्या करे कोई किसी से
परेशां हर कोई जब ज़िन्दगी से


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 24, 2014 at 12:50pm

आदरणीय मिथिलेश जी, मतला से ही तेवर का पता चल जाता है, सुन्दर मतला हुआ है, चाँदनी और हुकूमत वाला शेर भी बढ़िया लगा किन्तु मकता को जितना सराहूँ वो कम है, कुल मिलाकर एक बेहतरीन ग़ज़ल प्रस्तुत हुई है, बहुत बहुत बधाई प्रेषित है .

Comment by somesh kumar on December 24, 2014 at 11:55am

बस हर लाईने  दिल को बांधे रह रही हैं |ह्म्ख्याली होते हुए भी अलग तरह से और बेहतरीन अंदाज़ में अपनी बात रखना ,बस आपकी इसी काबलियत से आप से दिल जुड़ गया है |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 24, 2014 at 11:52am

बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई है दिल से बधाईयाँ मिथिलेश जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 24, 2014 at 10:48am

आदरणीय मिथिलेश भाई , पूरी  गज़ल खूब अच्छी हुई है  , हर शे र  बहुत सुन्दर कहे हैं ! ढेरों दाद कुबूल करें ।

कृपया ध्यान दे...

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