रहस्य-भावानुभूति
पा लेने की प्यास
खो देने की तड़प
ज्वालामुखी अग्नि हैं दोनों
बिछोह के धुँए को आँखों में सहते
गहरापन ओढ़े
गुज़र जाते हैं एक के बाद एक
खुशिओं के त्योहार
खुशियों में शून्यताओं की पीड़ाएँ अपार
नहीं ठहरती है हाथों में
खुशी, मुठ्ठी में रेत-सी
पर मौसम कोई भी हो
अकुलाती रहती है पैरों के तलवों के नीचे
तपती रेत की अग्नि-सी जलन
दुख में, सुख में
पसरी फिर वही
फिर वही थरथरी
अनुभवों की दर्दभरी गगरी
बीतती ज़िन्दगी के तथ्यों के
ज्वलन्त सिलसिले
अंगारों-से
फिर वही
फिर वही, दबी-दबी
प्रतीक्षा की अजब रोशनी
किसी के लौट आने की, पा लेने की
प्यास
अकस्मात अनजाने कठिन कंटीली
उसी पल, खो देने की तड़प
काल-अग्नि
घबराती बेचैनी
स्मृतियाँ उदास
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-- विजय निकोर(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
इच्छाएं हैं जो पूरी
पूरी होती नहीं ,
उम्मीदें हैं जो कभी
कहीं जाती नहीं ,
जिंदगी कैसी भी हो
जीने की हसरत
कहीं जाती नहीं।
क्या बात है , आपकी इन पंक्तियों को सादर समर्पित।
फिर वही
फिर वही, दबी-दबी
प्रतीक्षा की अजब रोशनी
किसी के लौट आने की, पा लेने की
प्यास।
बहुत बहुत बधाई इस ओजस्वी रचना के लिए ,आदरणीय विजय निकोर जी , सादर।
बहुत सुन्दर ..फिर से वही दिल छू लेने वाले भाव भरी प्रस्तुति ...बधाई आपको आ० विजय निकोर जी |
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