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आअदरनीय गुमनाम भाई , बढिया गज़ल कही है , हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
हर क़दम पे मिले फ़ना आशिक़
है तुम्हारी गली भी मक़्तल क्या - --- लाजवाब !
आदरणीय गुमनाम जी बहुत शानदार ग़ज़ल ..आखिरी शेर का तो जवाब नहीं .ढेरों बधाई स्वीकार करें सादर
बहुत बढ़िया i नये प्रतीक व् बिम्ब i याद और दलदल ---- वाह i
वाहहहहह वाहहहहह क्या बात है मित्र
क्या बात ..बहुत खूब !
धन्यवाद दोस्तों,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, कोशिशों को आप सराहते है तो ऊर्जा मिलती है
ढूंढ ही लेते हैं मुझे ये ज़ख़्म
ज़ख़्म भी बन गए है गूगल क्या
बहुत बढ़िया , आदरणीय गुमनाम पिथौरागढ़ी जी।
dhanywaad dosto.............aap ne saraha koshish safal hui
वाह जी ..क्या बात
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