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धरती माँ.....

प्राण प्रकृति सब कुछ झुलसाना
सूर्य हुआ है मनमाना।
मर्जी अपनी आना जाना
मेघ हुआ है मस्ताना।

तप्त पीत प्रकृति कर डाली
घैर्य धरा का जाँच रहा।
हँसता मुस्काता जन जीवन
निष्ठुर दिनकर दाघ रहा।
विनय कर रही धरती माता
मेहा जल्दी आ जाना।

कुपित हो गए काले मेघा
जमकर बरखा बरसाई।
रश्मि सँग रवि बंदी बनाया
ऊषा बिन लाली आई।
धरती माँ फिर विनय कर रही
सूर्य देवता आ जाना।
सीमा हरि शर्मा 18.10.2014
(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by seemahari sharma on October 22, 2014 at 3:41pm
आदरणीय Vijay Nikore जी बहुत बहुत आभार आपका रचना को पसंद किया।
Comment by vijay nikore on October 21, 2014 at 2:54am

बहुत ही सुंदर भाव पिरोय हैं। पढ़कर कर आनंद आया। बधाई।

Comment by seemahari sharma on October 20, 2014 at 8:24pm
आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी प्रकृति तो हम सभी पर मेहरबान होती है हम ही कृपण हो जाते हैं बहुत बहुत आभार ।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 20, 2014 at 6:01pm

आदरणीय

प्रकृति आप पर मेहरबान है और आप प्रकृति पर i

Comment by seemahari sharma on October 20, 2014 at 12:03pm
शुक्रिया Mahima Shree जी स्नेह बनाएं रखें।
Comment by MAHIMA SHREE on October 19, 2014 at 9:40pm

सुंदर भाव बधाई 

Comment by seemahari sharma on October 19, 2014 at 10:48am
शुक्रिया भाई जितेन्द्र 'गीत'जी धरती माँ हम बच्चों के लिये कितना कुछ सहती है। इसी का चित्रण करने का प्रयास किया है।
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 19, 2014 at 10:40am

बहुत ही सुंदर, सादगीपूर्ण मनुहार. हार्दिक बधाई आपको आदरणीया सीमाहरी जी

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