For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आसमानी फ़ासले .... (विजय निकोर)

आसमानी फ़ासले

बच्चों-सा स्वप्निल स्वाभाविक संवाद

हमारी बातों में मिठास की आभाएँ

ताज़े फूलों की खुशबू-सी निखरती

सुखद अनुभवों की छवियाँ ...

हो चुकीं इतिहास

समय-असमय अब अप्रभाषित

शून्य-सा मुझको लघु-अल्प बनाती

अस्तित्व को अनस्तित्व करती

निज अहं को आदतन संवारती

आलोचनाशील असंवेदनशीलता तुम्हारी

अब बातें हमारी टूटी कटी-कटी ...

बीते दिनों की स्मर्तियाँ पसार

मानवीय उलझनों के पठार

कर देते बेहद उदास

टूटे विश्वासों के विक्षोभों की अनथक गहरी पीर

इस पर भी सौन्दर्य-संध्या में मंदिर में

तुम्हारे लिए नित्य अनवरत अनंत प्रार्थना

सुख की याचना

अकेली-सुनसान रातों जलती है ढिबरी

राख रिश्ते की वीरानी

हथेली पर अशेष

जलते गर्म फफोले

तुम्हारी पहचान से अनदेखी

चट्टानी चोट

ज़िन्दगी की दलदल

फूटते कसकते बुलबुले

ठोकर से अकुलाते

पैर-अंगूठे के उखड़े नख का दर्द ...

--------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 836

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Vindu Babu on October 30, 2014 at 8:51pm

आत्मीय रिश्तों में अनापेक्षित बदलाव का आभास हृदय के तार-तार को झकझोर कर रख देता है..और इसी पल-पल चुभते कचोटते अहसास और अतीत की सुखद यादों के बीच बांध सी होती हैं ऐसी गहन अभिव्यक्तियाँ,जैसी आपने प्रस्तुत की।

आपके आत्मीय भाव और गम्भीर अभिव्यक्ति पाठक को साथ बहा ले जाने में सुसक्षम होती हैं आदरणीय।

रचना से बार-बार गुजरना अद्भुत अनुभूति देता है।

आपको हार्दिक बधाई आदरणीय इस सफ़ल रचना के लिए। सादर

Comment by vijay nikore on October 16, 2014 at 3:02pm

//बहुत ही मार्मिक//

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय विजय शंकर जी।

Comment by vijay nikore on October 16, 2014 at 3:00pm

//आपका लेखन हर बार नया और अद्भुत होता है ....बहुत बहुत गहरी रचना और उसके अनकहे भाव//

रचना को सराहने के लिए और इस प्रकार मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीया प्रियंका जी। 

Comment by vijay nikore on October 16, 2014 at 2:58pm

रचना की बधाई के लिए हार्दिक आभार, आदरणीय जवाहर लाल जी।

Comment by vijay nikore on October 15, 2014 at 11:49am

// फिर से एक पठनीय रचना आपकी और से आई , कुछ देर ठिठकने को मजबूर करती सी ..बहुत- बहुत बधाई //

इन सुंदर काव्यमय शब्दों से सराहना करने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीया राजेश जी।

Comment by vijay nikore on October 15, 2014 at 11:46am

रचना को समय देने के लिए और निहित भावों के अनुमोदन के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय लक्ष्मण जी।

Comment by vijay nikore on October 13, 2014 at 6:40am

भाई गिरीराज जी, रचना की सराहना के लिए हार्दिक आभार।

Comment by vijay nikore on October 8, 2014 at 5:11pm

 // समय के साथ इंसानी व्यवहार के बदलते अंदाज़ को जिस  कलात्मक अंदाज़ से आपने चित्रित किया है उसमें एक ही साथ आँखों से आँसू और होठों के कोर से तिर्यक मुस्कान को टपकते हुए देख रहा हूँ //

मैं आपकी सहृदय भावाभिव्यक्ति से अभिभूत हूँ l सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय शरदिंदु जी।

Comment by vijay nikore on October 8, 2014 at 5:05pm

//आपकी रचनाये हमेसा चमत्कृत करती है और एक बात 5-6 बार पढना तो बनता है//

मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय राम जी।

Comment by Dr. Vijai Shanker on October 8, 2014 at 9:49am
सुखद अनुभवों की छवियाँ ...
हो चुकीं इतिहास
बहुत ही मार्मिक ,आदरणीय विजय निकोर जी , सादर बधाई .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . रोटी
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post एक बूँद
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर रचना हुई है । हार्दिक बधाई।"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . रोटी
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई।"
Saturday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . विविध
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर "
Thursday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . विरह
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
Thursday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
Thursday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर ।  नव वर्ष की हार्दिक…"
Thursday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .शीत शृंगार
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी । नववर्ष की…"
Thursday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . दिन चार
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी ।नववर्ष की हार्दिक बधाई…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . दिन चार
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .शीत शृंगार
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई"
Jan 1
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई"
Jan 1

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service