नित बैठी रहती हूँ उदास
हर पल आती पापा की याद
सावन में सखियाँ जब
ले कर बायना आती हैं
नैहर की चीजें दिखा-दिखा
इतराती हैं,
तब भर आता है दिल मेरा
पापा की कमी रुलाती है
कहती हैं जब, वो सब सखियाँ
पापा की भर आयीं अंखिया
मेरे बालों को सहलाया था
माथा चूम दुलराया था
सुनती हूँ जब उनकी बतिया
व्यकुल हो गयी मेरी निदिया
मन अधीर हो जाता है
पापा को बहुत बुलाता है
पर खुश देख सखी को
हल्का करतीं हूँ मन को
सज जाती है होठो पर
यादों की पीर
नैनो से आज फिर छलक आयी
बहती सी नीर
जीवन का रंग कितना
बदल जाता है
पापा बिन सावन का
इक तीज-त्यौहार न भाता है ||
मीना पाठक
मौलिक अप्रकाशित
Comment
आदरणीय आशुतोष जी सही कहा आपने ....रचना सराहने हेतु बहुत बहुत आभार
प्रिय कल्पना बहुत बहुत आभार ..सस्नेह
बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना, आदरणीया मीना दीदी. बधाई आपको
मीना जी
बड़ी ही भावपूर्ण रचना है i आपको बधाई i
aadarneeyaa meena jee ..betiyon ko pita se bishes lagaav hota hai betiyon ke liye pita kee yadon me kho jaana atyant sahaj hai ..in bhabon ka bakhoobee chitran kiya hai aapne aapko dher saaree badhaaayee saadar
अपने स्नेही जनों की याद दिलाती आप की रचना ने भावुक कर दिया । दी आप को हार्दिक बधाई /सादर
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