For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जिसको तुमने खोया माना-डा० विजय शंकर

जिसको तुमने खोया माना है ,
उसको मैंने पाया जाना है ।
कुछ अटपटा , उलटा सा लगता है ,
पर जिन्दगीं तुमको मैंने ऐसा ही जाना है
जो खो गया , वो क्या ले गया ,
हाँ, अपनी स्मृतियाँ छोड़ गया ||
कुछ मीठी , कुछ तीखी,
पर जीने के लिए बहुत
काफी है , एक सहारे की तरह ||
एक गीत , एक कविता लिखता हूँ ,
जब तक लिखता हूँ , मेरा है , जब
छोड़ देता हूँ , पढ़ने वालों के लिए,
मेरा क्या रह गया उसमें , पर
खो दिया, क्या मैंने उसको ,
गर खो दिया , तो वही तो पाना है ,
जिसको औरों ने गवाना जाना है ||
---+------+-----+-----+---
मानव रह गया समेटते ,
कहाँ समेट पाया सारा ,
जब अपना खोया सारा
उस दिन पाया जग सारा ||

मौलिक एवं अप्रकाशित
डा० विजय शंकर

Views: 675

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 20, 2014 at 1:06am
आदरणीय सुशील सरना जी ,
आपका विश्लेषण सही है, धन्यवाद। आपको रचना पसंद आयी , बहुत अच्छा लगा जानकार।
आपकी पूरक पंक्तियाँ बहुत अच्छी हैं , जगत मिथ्या का सिद्धांत निरूपित करती इन पंक्तियों के लिए भी बहुत बहुत धन्यवाद।
सादर।
Comment by coontee mukerji on June 19, 2014 at 11:51pm

बहुत सुंदर कथन. हार्दिक बधाई.

Comment by कल्पना रामानी on June 19, 2014 at 10:30pm

इक कल है जो बीत गया
इक कल में गहन अँधेरा है
सांस सांस इस पल को जी ले
जीवन आती सांस का मेला है...गहन चिंतन की सुंदर प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बधाई आदरणीय विजय शंकर जी

Comment by Sushil Sarna on June 19, 2014 at 6:54pm

शानदार आध्यात्मिक रचना …… सुंदर शब्द विन्यास और सरल प्रवाह की इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ विजय शंकर जी। । इसी सन्दर्भ में चंद पंक्तियाँ आपकी नज़र :

न मेरा है न तेरा है
ये जग रेन बसेरा है
इक कल है जो बीत गया
इक कल में गहन अँधेरा है
सांस सांस इस पल को जी ले
जीवन आती सांस का मेला है
जिस काया है पे नाज़ तुझे
वो बिन सांस मिट्टी का ढेला है
सुशील सरना

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 19, 2014 at 5:29pm
बहुत सुन्दर आ o गोपाल नरायन जी,वर्तमान ही जीवन है , धन्यवाद ।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 19, 2014 at 12:17pm

आदरणीय

मत अतीत का मोह करो तुम

               वर्तमान जीवन जीवन है i

वर्तमान में जीन वाले

              को ही करता ईश नमन है i

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
1 hour ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन भाईजी,  प्रस्तुति के लिए हार्दि बधाई । लेकिन मात्रा और शिल्पगत त्रुटियाँ प्रवाह…"
10 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी, समय देने के बाद भी एक त्रुटि हो ही गई।  सच तो ये है कि मेरी नजर इस पर पड़ी…"
10 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, इस प्रस्तुति को समय देने और प्रशंसा के लिए हार्दिक dhanyavaad| "
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपने इस प्रस्तुति को वास्तव में आवश्यक समय दिया है. हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार…"
12 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी आपकी प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद. वैसे आपका गीत भावों से समृद्ध है.…"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त चित्र को साकार करते सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"सार छंद +++++++++ धोखेबाज पड़ोसी अपना, राम राम तो कहता।           …"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"भारती का लाड़ला है वो भारत रखवाला है ! उत्तुंग हिमालय सा ऊँचा,  उड़ता ध्वज तिरंगा  वीर…"
yesterday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"शुक्रिया आदरणीय चेतन जी इस हौसला अफ़ज़ाई के लिए तीसरे का सानी स्पष्ट करने की कोशिश जारी है ताज में…"
Friday
Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"संवेदनाहीन और क्रूरता का बखान भी कविता हो सकती है, पहली बार जाना !  औचित्य काव्य  / कविता…"
Friday
Chetan Prakash commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"अच्छी ग़ज़ल हुई, भाई  आज़ी तमाम! लेकिन तीसरे शे'र के सानी का भाव  स्पष्ट  नहीं…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service