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दौर...(लघु-कथा)

“ आज का मैच तो बड़ा रोमांचक है यार, बड़े जबर्दस्त फार्म में  है टीम...”

“अरे हाँ यार!   तेरे घर  तो मैच देखने का आनंद ही अलग है, पर यार ये अन्दर से कराहने की आवाज तेरी मम्मी की आ रही है क्या..?”

“ आने दे यार!  वो तो उनकी रोज की आदत है, बूढी जो हो गई है थोड़ी देर में सो जाएँगी. तू तो मैच देख  मैच”

 

              जितेन्द्र ’गीत’

      ( मौलिक व् अप्रकाशित )

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 6, 2014 at 10:14pm

रचना पर आपकी उपस्थिति का बड़ा बेसब्री से इन्तजार रहता है आदरणीय सौरभ जी. आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया हेतु आपका तहे दिल से आभारी हूँ .लघुकथा की सार्थकता, यहीं की संलग्नता और आप सभी अग्रजो के मार्गदर्शन का असर है .

सादर!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 6, 2014 at 9:36pm

ग़ज़ब ! ग़ज़ब !

सबने अपनी-अपनी कह दी है..  हम चूँकि देर से आये हैं, सो अधिक नहीं कहेंगे.  बस इतना ही कि सतत संलग्नता और धैर्य के साथ होता हुआ रचनाकर्म क्या कुछ हो जाने का कारण होता है आपकी यह प्रस्तुति मुखर स्वर में कह रही है, भाई जितेन्द्रजी.

अतिशय बधाइयाँ .. हार्दिक शुभकामनाएँ

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 29, 2014 at 9:42am

आँखे तो सभी की खुली रहती है परन्तु सिर्फ स्वार्थ हेतु, क्या आशा की जाए ?  रचना पर आपकी उपस्थिति हेतु आपका ह्रदय से आभारी हूँ आदरणीय सुरेन्द्र जी. स्नेह बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on June 28, 2014 at 4:37pm

प्रिय जितेंद्र भाई जबरदस्त लघु कथा। . आप की सोच की दाद देनी होगी एक करारा प्रहार आज के पंगु होते सामाजिक व्यवस्था पर। . काश संतान आँखें खोल सकें
जय श्री राधे
भ्रमर ५

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 28, 2014 at 9:05am

आपकी उत्साहवर्धक सराहना से बहुत मनोबल मिलता है, आपका ह्रदय से आभारी हूँ आदरणीय गिरिराज जी.स्नेह बनाये रखियेगा

सादर !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 26, 2014 at 11:33pm

आदरणीय जितेंद्र भाई , बहुत ही कम शब्दों मे आपने एक महीन भाव को उजागर किया है  , बहुत बहुत बधाइयँ , लघुकथा के लिये ॥

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 26, 2014 at 11:10pm

आपकी सराहना पाकर मेरी रचना धन्य हो गई आदरणीय योगराज जी, आपकी बधाई सहर्ष शिरोधार्य है. अपना स्नेहिल मार्गदर्शन बनाये रखियेगा

सादर!


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on June 26, 2014 at 10:58am

सतही दृष्टि से आम से लगने वाले क्षणों को बहुत महीनता से बुना  है भाई जीतेन्द्र जी,  मेरी हार्दिक बधाई स्वीकारें।

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 26, 2014 at 10:49am

रचना पर आपकी उत्साहवर्धक सराहना से रचना को सार्थकता का प्रमाण मिलता है आदरणीया डा.प्राची जी, आपका ह्रदय से आभार

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 26, 2014 at 10:46am

आदरणीय रवि जी, आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया ने बहुत मनोबल दिया है. मैं जो कुछ भी लिखना सीखा हूँ यह सब ओ बी ओ का ही सानिध्य है.सच कहूँ तो कभी जीवन में नही सोचा था की मैं कभी कुछ लिख पाउँगा, यहाँ का अपनापन व् स्नेह से भरा मार्गदर्शन ही मुझे आज मेरी पहचान बता रहा है. आपने मुझे मित्र भी कह दिया तो फिर क्षमा की कोई बात ही नही. और इस दुनिया में बातों या विचारों से बुरा मानने वाला इंसान शायद सही निर्णय ही नही ले पाता. रचना पर आपके मार्गदर्शन से मुझे बहुत ख़ुशी मिली आपका ह्रदय से आभारी हूँ :))

सादर!

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