For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जिन्होंने रास्तों पर खुद कभी चलकर नहीं देखा
वही कहते हैं हमने मील का पत्थर नहीं देखा

.
मिलाकर हाँथ अक्सर मुस्कुराते हैं सियासतदाँ
छिपा क्या मुस्कराहट के कभी भीतर नहीं देखा
.

उन्हें गर्मी का अब होने लगवा अहसास शायद कुछ
कई दिन हो गए उनको लिए मफलर नहीं देखा
.

सड़क पर आ गई थी पूरी दिल्ली एक दिन लेकिन
बदायूं को तो अब तक मैंने सड़कों पर नहीं देखा
.

फ़क़त सुनकर तआर्रुफ़ हो गया कितना परेशां वो
अभी तो उसने मेरा कोई भी तेवर नहीं देखा
.

अभी तो बाबुओं ने ही उसे दौड़ा के रक्खा है
अभी तो उसने ढंग का एक भी अफसर नहीं देखा
.

ये जैसलमेर की जलती ज़मीं कुछ पूछती तुझसे
बता ऐ अब्र तूने क्यूं कभी मुड़कर नहीं देखा
.

मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 724

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SALIM RAZA REWA on September 23, 2017 at 9:48pm
आदरणीय राणा प्रताप सिंह जी,
मतले से मक़्ते तक इस ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए दिली मुबारक़बाद,
Comment by Madan Mohan saxena on July 10, 2014 at 4:41pm

.
मिलाकर हाँथ अक्सर मुस्कुराते हैं सियासतदाँ
छिपा क्या मुस्कराहट के कभी भीतर नहीं देखा

अच्छी गज़ल के लिए बधाई।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 30, 2014 at 5:52pm

शानदार ....हालात को एक नई कसौटी पर कसती हुई ग़ज़ल के लिए बधाई 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 29, 2014 at 7:40pm

//उन्हें गर्मी का अब होने लगवा अहसास शायद कुछ
कई दिन हो गए उनको लिए मफलर नहीं देखा // टंकण त्रुटि है शायद। 

//फ़क़त सुनकर तआर्रुफ़ हो गया कितना परेशां वो 
अभी तो उसने मेरा कोई भी तेवर नहीं देखा // बहुत ही खूबसूरत शेर हुआ है।


कुल मिलाकर एक अच्छी ग़ज़ल प्रस्तुत हुई है, राणा जी दाद कुबूल करें।
Comment by कल्पना रामानी on June 16, 2014 at 7:53pm

खूबसूरत उम्दा गज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई।  अंतिम शेर बहुत पसंद आया

Comment by Zid on June 11, 2014 at 8:26pm

सोचते सोचते इस मुकाम पर पहुंचे हो
के ज़िद तूने अबतक पुख्ता इंसा नहीं देखा


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 9, 2014 at 7:13pm

हर शेर आजकी विसंगतियों को बखूबी साझा करता हुआ है. बदायूँ वाला शेर एकदम से मौजूं होने कारण लाजिमी है ध्यान खींचता है. अलबत्ता, बिम्बात्मक तो मफ़लर और जैसलमेर वाले शेर हुए हैं. ’तुझसे’ जैसे सर्वनाम के साथ संज्ञा ’अब्र’ को निभा जाना एकदम से मोह गया. 

इस शानदार ग़ज़ल के लिए ढेर सारी बधाई स्वीकारें.

Comment by वीनस केसरी on June 9, 2014 at 4:25am

सड़क पर आ गई थी पूरी दिल्ली एक दिन लेकिन
बदायूं को तो अब तक मैंने सड़कों पर नहीं देखा ...

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on June 8, 2014 at 10:53pm

वाह - वाह - वाह - वाह........बेहद उम्दा गजल हुई है भाई.... खासकर ये शेर तो कमाल हो गया.........

अभी तो बाबुओं ने ही उसे दौड़ा के रक्खा है
अभी तो उसने ढंग का एक भी अफसर नहीं देखा

Comment by umesh katara on June 8, 2014 at 8:10am

हरिक शेर उम्दा है यथार्थ को खींचती गजल है वाहहहहहहहहहहहहहहहह हार्दिक अभिनंदन 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीया ऋचा जी, बहुत धन्यवाद। "
54 minutes ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमीर जी, बहुत धन्यवाद। "
54 minutes ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमित जी, आप का बहुत धन्यवाद।  "दोज़ख़" वाली टिप्पणी से सहमत हूँ। यूँ सुधार…"
56 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"//दोज़ख़ पुल्लिंग शब्द है//... जी नहीं, 'दोज़ख़' (मुअन्नस) स्त्रीलिंग है।  //जिन्न…"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"जी, बहतर है।"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार…"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया। आशा है कि…"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से…"
2 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये अमित जी की  टिप्पणी क़ाबिले ग़ौर…"
2 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमीर जी नमस्कार बेहतरीन ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये हेर शेर क़ाबिले तारीफ़ हुआ है, फिर भी…"
2 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय संजय जी नमस्कार बहुत ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गिरह ख़ूब, अमित जी की टिप्पणी…"
2 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय लक्ष्मण जी बहुत शुक्रिया आपका सादर"
2 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service