For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हम फिर से गुलाम हो जायेंगे

हमारे जीवन मूल्य
सरेआम नीलाम हो जायेंगें
हम फिर से गुलाम हो जायेंगें ..

स्वतंत्रता का काल स्वर्णिम
तेजी से है बीत रहा
हासिल हुआ जो मुश्किल से
तेजी से है रीत रहा.
धरी रह जाएगी नैतिकता,
आदर्श सभी बेकाम हो जाएँगे .
हम फिर से गुलाम हो जायेंगे ..

कहों ना ! जो सत्य है.
सत्य कहने से घबराते हो
सत्य अकाट्य है , अक्षत
छूपता नहीं छद्मावरण से
जो प्राचीन है , धुंधला,
गर्व उसी पर करके बार बार दुहराते हो.
टूटे हुए कलश, भंजित प्रतिमा
ध्वस्त अभिमान, लूटी स्त्रियाँ
नत सर .
ये इतिहास हैं.
ये सत्य हैं, अकाट्य , अक्षत,
गर्व करो या स्वीकारो
या उठा कर फ़ेंक आओ इन पन्नो को
अरब सागर की अतल गहराइयों में.
पर सत्य नहीं बदलेगा
सत्य नग्न होता है.
सत्य पे झूठ के आवरण
नाकाम हो जायेंगें.
हम फिर से गुलाम हो जायेंगे ..

नैतिकता और कायरता में
पुरुषार्थ भर का अंतर है
कायरों की नैतिकता
चलती नहीं अनंतर है.
सूरज को हाथों से ढकने के यत्न
नाकाम हो जायेंगे
हम फिर से गुलाम हो जायेंगे ..

……… Neeraj kumar neer
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 406

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 2, 2014 at 8:57am

हालात पर अफ़सोस करते उलाहने देने और परिस्थितियों पर प्रतिक्रिया से इतर यदि कुछ सदिश करते निर्देश भी निहित होते तो रचना की ऊर्जा सकारात्मक ग्राह्यता रखती..

वैसे कथ्य मनस को उद्वेलित करने में सक्षम है 

प्रस्तुत रचना पर हार्दिक बधाई 

Comment by Satyanarayan Singh on May 1, 2014 at 11:19am

सुन्दर भावों से सजी इस प्रस्तुति के लिए  हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय नीरज जी

Comment by vijay nikore on April 28, 2014 at 11:47am

बहुत ही सुन्दर भाव हैं।

एक सुझाव ... यदि रचना को अनुच्छेदों में विभक्त करते तो इसे पढ़ने का आनन्द और भी बढ़ जाता।

इस अच्छी रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई।

Comment by Neeraj Neer on April 26, 2014 at 5:46pm

आ जीतेन्द्र भाई बहुत बहुत आभार आपका..

Comment by Neeraj Neer on April 26, 2014 at 5:46pm

आपका हार्दिक आभार आदरणीया कुंती मुख़र्जी जी .

Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 26, 2014 at 2:36pm

स्वतंत्रता का काल स्वर्णिम
तेजी से है बीत रहा
हासिल हुआ जो मुश्किल से
तेजी से है रीत रहा.
धरी रह जाएगी नैतिकता,
आदर्श सभी बेकाम हो जाएँगे .
हम फिर से गुलाम हो जायेंगे .
आदरणीय नीरज जी ..गीत के माध्यम से व्यक्त की गयी चिंता जायज है ..सचमुच दुखद है इस तरह सतत होता नैतिक मूल्यों का अवमूल्यन ..सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 24, 2014 at 6:20pm

आदरणीय नीरज भाई , जीवन मूल्यों मे लगातार आते गिराव को देखते हुये आपकी आशंका निर्मूल नही है । सुन्दर रचना के लिये आपको बधाई !!

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 24, 2014 at 4:05pm

देश की बदलती परिस्थितियों पर सुन्दर रचना की है आदरणीय नीरज कुमार 'नीर' जी सादर बधाई स्वीकारें.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 24, 2014 at 10:52am

बहुत गहरे व् दूरदर्शी दृष्टिकोण से रची इस रचना पर आपको बहुत बहुत बधाई आदरणीय नीरज जी

Comment by coontee mukerji on April 23, 2014 at 4:23pm

हम फिर से गुलाम हो जायेंगे ..

नैतिकता और कायरता में
पुरुषार्थ भर का अंतर है
कायरों की नैतिकता
चलती नहीं अनंतर है.
सूरज को हाथों से ढकने के यत्न
नाकाम हो जायेंगे
हम फिर से गुलाम हो जायेंगे .....बहुत सुंदर .  एक दूर्दर्शिता  का प्रमाण दिया है अपनी रचना  में. अनेक शुभकामानाएं.....सादर.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . धर्म
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
1 minute ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"दोहा सप्तक. . . . . मित्र जग में सच्चे मित्र की, नहीं रही पहचान ।कदम -कदम विश्वास का ,होता है…"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर,…"
9 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"गीत••••• आया मौसम दोस्ती का ! वसंत ने आह्वान किया तो प्रकृति ने श्रृंगार…"
16 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आया मौसम दोस्ती का होती है ज्यों दिवाली पर  श्री राम जी के आने की खुशी में  घरों की…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"स्वागतम"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . धर्म
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपकी दोहावली अपने थीम के अनुरूप ही प्रस्तुत हुई है.  हार्दिक बधाई "
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . जीत - हार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपकी दोहावली के लिए हार्दिक धन्यवाद.   यह अवश्य है कि…"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपकी प्रस्तुति आज की एक अत्यंत विषम परिस्थिति को समक्ष ला रही है. प्रयास…"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . पतंग
"आवारा मदमस्त सी, नभ में उड़े पतंग ।बीच पतंगों के लगे, अद्भुत दम्भी जंग ।।  आदरणीय सुशील…"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on नाथ सोनांचली's blog post कविता (गीत) : नाथ सोनांचली
"दुःख और कातरता से विह्वल मनस की विवश दशा नम-शब्दों की रचना के होने कारण होती है. इसे सुन्दरता से…"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post मकर संक्रांति
"बढिया भावाभिव्यक्ति, आदरणीय. इस भाव को छांदसिक करें तो प्रस्तुति कहीं अधिक ग्राह्य हो जाएगी.…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service