बदला है वातावरण, निकट शरद का अंत ।
शुक्ल पंचमी माघ की, लाये साथ बसंत ।१।
अनुपम मनमोहक छटा, मनभावन अंदाज ।
ह्रदय प्रेम से लूटने, आये हैं ऋतुराज ।२।
धरती का सुन्दर खिला, दुल्हन जैसा रूप ।
इस मौसम में देह को, शीतल लगती धूप ।३।
डाली डाली पेड़ की, डाल नया परिधान ।
आकर्षित मन को करे, फूलों की मुस्कान ।४।
पीली साड़ी डालकर, सरसों खेले फाग ।
मधुर मधुर आवाज में, कोयल गाये राग ।५।
गेहूँ की बाली मगन, इठलाये अत्यंत ।
पुरवाई भी झूमकर, गाये राग बसंत ।६।
पर्व महाशिवरात्रि का, पावन और विशेष ।
होली करे समाज से , दूर बुराई द्वेष ।७।
अद्भुत दिखता पुष्प से, भौरें का अनुराग ।
और सुगन्धित बौर से, लदा आम का बाग़ ।८।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
बहुत खूब...............लाजवाब.................ऋतू राज का सिन्दार वर्णन
पीली साड़ी डालकर, सरसों खेले फाग ।
मधुर मधुर आवाज में, कोयल गाये राग
गेहूँ की बाली मगन, इठलाये अत्यंत ।
पुरवाई भी झूमकर, गाये राग बसंत
बसंत ऋतू पर सजीव-चित्रण करते दोहे, बधाई आदरणीय अरुण जी
आदरणीय अरुण अनंत भाई,बशंत ऋतू पर सभी दोहे लाजवाब हैं.हार्दिक बधाई.
भाई अरुण शर्मा 'अनंत' जी सादर, बहुत ही सुन्दर और मस्त मस्त दोहे हैं. बहुत बहुत बधाई स्वीकारें. ऋतू के अनुसार पहले दोहे में 'शरद' की जगह 'शीत' शायद अधिक उपयुक्त होता. सादर.
मस्त हुई दोहावली , छाया यहाँ बसन्त
दिली बधाई आपको ,अरुण शर्मा अनंत /
अरुण शर्मा अनंत जी,
सुन्दर दोहावली , हार्दिक बधाई
बशंत ऋतू पर सुन्दर दोहावली के लिए हार्दिक बधाई श्री अरुण शर्मा "अनंत" जी
आदरणीय अरुण अनंत भाई , सभी दोहे लाजवाब हैं , आपको हर एक दोहे के लिये अनेकों बधाइयाँ ॥
बहुत सुन्दर दोहावली .. बहुत बहुत बधाई
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