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"अपने ख़्वाबों को खिलाऊँ क्या, पिलाऊँ क्या बताओ " - गज़ल - ( गिरिराज भंडारी )

2122    2122    2122     2122

 

गुम्बदों से क्यों कबूतर आज कल डरने लगे हैं

दूरियाँ रख कर चलेंगे फैसले करते लगे हैं

 

पतझड़ों की साजिशों से, अब बहारों में भी देखो

हर शज़र मुरझा गया, पत्ते सभी झड़ने लगे हैं

 

अपने ख़्वाबों को खिलाऊँ क्या, पिलाऊँ क्या बताओ

कोई भूखा कोई प्यासा है, सभी मरने लगे हैं

 

जैसे गोली की किसी आवाज़ से भागे परिन्दे

मुफ़लिसी क्या आ गई रिश्ते सभी कटने लगे हैं

 

कुछ सियासी फैसलों से और बाक़ी मज़हबों से

देश वासी ख़ेमों- तबकों में सभी बटने लगे हैं

 

उन खतों का भी सहारा अब कहाँ बाक़ी है मुझको

याद भी ताज़ा नहीं, अब हर्फ़ भी मिटने लगे हैं

 

एक दिन तो धूप चटकीली कभी हम देख पाते

धूप क्या निकली, उधर से अब्र फिर घिरने लगे हैं

 

वाकिये सारे पुराने में बहुत तल्ख़ी भरी थी

क्या करूँ मै सारे नग़्मों में वही ढलने लगे हैं

**************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 23, 2013 at 7:13pm

आदरणीया अन्नपूर्णा जी , गज़ल की सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 23, 2013 at 7:12pm

आदरणीय अरुण भाई , गज़ल पर आपकी उपस्थिति से प्रसन्न हूँ ॥ गज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ॥

Comment by annapurna bajpai on December 23, 2013 at 6:56pm

आदरणीय गिरिराज जी सुंदर भावों के साथ रची गई गजल के लिए आपको बहुत बधाई । 

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 23, 2013 at 1:28pm

आदरणीय गिरिराज सर बहुत ही उम्दा ग़ज़ल कही है आपने मिसरों में थोड़ी उलझन जरुर हो रही है जैसा कि आदरणीय भ्राताश्री जी ने भी कहा है. खैर ग़ज़ल मुझे पसंद आई इस हेतु दाद कुबूल फरमाएं.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 23, 2013 at 11:04am

आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल की सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ॥

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 23, 2013 at 7:53am

आदरणीय गिरिराज भाई,
बहुत खूब ग़ज़ल कही है, यह पंक्तिया बेहद अच्छी लगीं . हार्दिक बधाई .

उन खतों का भी सहारा अब कहाँ बाक़ी है मुझको

याद भी ताज़ा नहीं, अब हर्फ़ भी मिटने लगे हैं


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 22, 2013 at 1:01pm

आदरणीया वंदना जी , गज़ल की सराहना के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥

Comment by vandana on December 22, 2013 at 7:40am

बहुत खूब ग़ज़ल कही है आदरणीय गिरिराज सर सभी अशआर तारीफ के क़ाबिल..बहुत बहुत बधाई आदरणीय 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 21, 2013 at 5:53pm

आदरणीय गणेश भाई , आपका बहुत बहुत शुक्रिया , मिसरे पर विचार देने के लिये , आगे से आपकी सलाह का भी ध्यान रखूंगा ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 21, 2013 at 4:48pm

आदरणीय आशुतोष भाई , ॥ गज़ल की सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥

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