गर्म हवा है खूब यहाँ की
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जो भी मुझसे सम्बंधित है
सुख पाने से वो वंचित है
मौन यहाँ है सबसे अच्छा
कुछ कहना अब प्रतिबंधित है
मै अधिकार कहाँ से पाऊँ
कुछ विशेष को आबंटित है
गर्म हवा है खूब यहाँ की
आज परिन्दा आतंकित हैं
अभी छाँव में धूप है शामिल
सारे सुखों मे दुख किंचित है
हरदम अड़चन मुझ तक आई
क्या ? कठिनाई नामांकित है
ये कैसी दुनिया है भाई
हर माथा सिकुड़ा, चिंतित है
मधु भावों से आप सभी के
अब मेरा तन मन सिंचित है
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मौलिक एवँ अप्रकाशित ( संशोधित )
Comment
अंतिम शेर में पर के स्थान पर ही करने से शायद बात बन जाएगी ...
या फिर ऐसे
मधु भावों से आप सभी के
मेरा ये तन मन सिंचित है
आदरणीय गिरिराज क्या खूब सुन्दर ग़ज़ल कही है आपने सभी अशआर बहुत ही संजीदा बन पड़े हैं काफिया तो बहुत सुन्दर एवं आकर्षक है अंतिम शेर पुनः देख लें. इस सुन्दर ग़ज़ल पर बधाई स्वीकारें.
मधु भावों से आप सभी के
पर मेरा तन मन सिंचित है ( कहाँ स्पष्ट नहीं हो पा रहा है पर अटक रहा है शायद मेरा भ्रम हो)
सुंदर ग़ज़ल कही है ...बधाई
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शामिल छाँव में धूप अभी है
सारे सुखों मे दुख किंचित है.... को
छाँव, धूप में अभी है शामिल ...करने से ताक़बुले रदीफ़ से बचा जा सकता है
चूंकि ये मात्रिक बह्र है ..इसमें किसी भी २२२२ को ११२२२ या २ २२११ या १२१२२ या १२२१२ करने की आज़ादी है ..उस का पूरा लाभ उठाया जाना चाहिए ... बधाई पुन: एक बार
आदरणीय विजय मिश्र भाई , !!!!! गज़ल की सराहना और हौसला अफज़ाई के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया !!!!!
आदरणीय बड़े भाई अखिलेश जी , गज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार !!!!
छोटे भाई अच्छी गज़ल की बधाई ।
आदरनीय सन्दीप भाई , उचित सलाह ले लिये आपका आभारी हूँ , संशोधन कर लिया हूँ !!! आपका पुनः आभार !!!!
आदरणीय शिज्जू भाई , सराहना और सलाह के लिये आपका आभार , संशोधन कर लिया हूँ !!! ऐसे ही स्नेह बनाये रखें !!!!!
सच कहा आदरणीय शिज्जू जी ......................मैं तो जल्दबाजी में ये देखना ही भूल गया ...............काफिया में गड़बड़ी हो गयी है बाकी के कुछ अशआर में ........सादर धन्यवाद
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