ऐ सांझ ,तू क्यूँ सिसकती है .......
ऐ सांझ ..
तू क्यूँ सिसकती है //
अभी कुछ देर में ..
तिमिर घिर जाएगा …
तिमिर की चादर में …
हर रुदन छुप जाएगा //
रुदन …
उस क्षण का …
जब एक ….
किलकारी ने ….
अपनी चीख से ब्रह्मांड में ….
सन्नाटा कर दिया //
रुदन उस क्षण का ….
जब एक कोपल …
एक वहशी की वासना का ….
शिकार हो गयी //
रुदन उस क्षण का …..
जब दानव बना मानव ……
दरिंदगी की सारी हदें …..
पार कर गया //
रुदन उस क्षण का …..
जब एक पुष्प से …..
कोई छद्मवेशी मानव …..
कुकृत्य कर …..
मानवता को …..
रक्त रंजित कर गया //
हाँ,
ऐ साँझ
ये तो रुदन तो …..
वक्त की सुईयों के साथ ….
शायद ….
धीरे धीरे …..
शून्यता में लीन हो जाएगा //
लेकिन क्या कोई …
एक मोमबत्ती जलाकर ….
इस रुदन के विरुद्ध आवाज उठाएगा ?
क्या कोई …
इस दरिन्दे के नुकीले नाखूनों से ….
माँ ,बहन,बीवी,और बेटी के …..
पावन रिश्ते को ….
लहू लुहान होने से बचाएगा ??
हाँ !
एक एक मोमबत्ती हम सब को …
इस दरिंदगी को ….
जड़ से मिटाने के लिए ….
जलानी होगी //
हर चुनरी की ,,,,
लाज बचानी होगी //
तभी ,
हाँ तभी ,
ऐ सांझ तू सुहानी होगी //
ऐ सांझ तू सुहानी होगी ……..
सुशील सरना
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
aa.Giriraj Bhandaaree jee rachna par aapke sneh ka haardik aabhaar
aa.Annnapuma bajpai jee rachna par aapkee aatmeey sneh ka haardik aabhaar
Dr.Gopal Narain Shrivastav jee aapkee aatmeey pratikriya ka haardik aabhaar
इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ. |
जिस तरह से कविता शुरू हुई, आगे जाकर चरमराकर ढह गई.कविता को एडिटिंग की जरूरत है! बाकी आप स्वयं विद्वान् हैं. ये मेरे विचार हैं, आपका सहमत होना जरूरी नहीं.
बहरहाल, इस अभिव्यक्ति पर आपको हार्दिक बधाई!
सुन्दर सोच लिये आपकी इस रचना के लिये आपको बधाई , आदरणीय !!!!!!
आदरणीय सुशील जी काफी अच्छी रचना है । बधाई
सुशील जी
देश को इस आग , इस मशाल और इस मोमबत्ती की बहुत जरूरत है
आपका कथ्य निसंदेह बहुत सुन्दर है i
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