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प्राण जिसमें है मरेगा ( गज़ल ) गिरिराज भंडारी

2122  2122 ( बिना रदीफ )

जो भरा है वो बहेगा   

रिक्तता है तो भरेगा

 

डर हमे काहे सताये

प्राण जिसमें है मरेगा

 

कानों सुनके आँखों देखे

चुप भला कैसे रहेगा

 

लेखनी पे हो नज़र तो

वो नज़र से ही कहेगा

 

गर्त पूछे आदमी से

और कितना तू गिरेगा

 

जो ज़हर सा बोलता है

बस वही पीड़ा हरेगा

 

खूब मीठा बोल मत तू

देखना कीड़ा पड़ेगा

ज़ोर मिल कर सब लगायें

देखिये  पर्वत हिलेगा

नेक - बद दोनों खड़े  है

सोचते हैं  क्या मिलेगा ?

  *****************

मौलिक एवँ अप्रकाशित ( संशोधित )

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Comment

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Comment by वीनस केसरी on December 17, 2013 at 3:43am

बात जितनी सादगी से कही जाए उतनी पसंद आती है शब्दों को घुमा कर वाक्य बनाना मजबूरीवश किया जाए तो समझ आता है मगर जब बहर की दिक्कत न खडी हो रही हो तो वाक्य गद्य के जैसा ही रहे तो लुत्फ़ बढ़ जाता है ...

और कितना तू गिरेगा
को और तू कितना गिरेगा किया जा सकता है

Comment by Nilesh Shevgaonkar on November 29, 2013 at 9:20am

गर्त पूछे आदमी से

और कितना तू गिरेगा...........क्या बात, क्या बात ..बहुत ख़ूब ..बधाई

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 28, 2013 at 8:47pm

आदरणीय सन्देप भाई , !!!!! ग़ज़ल की सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया !!!!!!

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on November 28, 2013 at 8:17pm

वाह वाह सर जी बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने

गर्त पूछे आदमी से

और कितना तू गिरेगा ............ग़ज़ब ग़ज़ब ग़ज़ब

दिली दाद हाजिर है आपकी इस ग़ज़ल के लिए जय हो


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 28, 2013 at 5:27pm

आदरणीय अरुण अनंत भाई , !!!!!!!!!!!!!!!!! गज़ल की सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

Comment by अरुन 'अनन्त' on November 28, 2013 at 12:01pm

आदरणीय गिरिराज सर बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल कही है आपने बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 27, 2013 at 10:52pm

ओह. ऐसा .. !

खैर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 27, 2013 at 10:43pm

आदरणीय सौरभ भाई , अपने सही कहा कि सुधारना अधिक उचित बात होती , पर इस समय मै आपका इशारा समझ नही पा रहा हूँ , कि कौन सी गलती को सुधारूँ , जब आपने कहा है तो गलती तो ज़रूर होगी मै ये मानता हूँ  , शिल्प के लिहाज़ से सही लग रही है , भाषा या सोच के लिहाज से शायद गलती हो , असमंजस मे था और अभी भी हूँ !! इसीलिये मैने उसे फिलहाल निकाल दिया है , पर सुधार की कोशिश अभी भी कर रहा हूँ !!!! मै प्रयास ज़रूर करूंगा !!!! उचित सलाह  के लिये आभार !!!!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 27, 2013 at 10:21pm

आदरणीय उस शेर को हटाने के स्थान पर उसमें सुधार किया होता आपने तो अधिक उचित बात होती.

बाकी ठीक है.

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 27, 2013 at 9:30pm

आदरणीया महिमा श्री जी , !!!!!!! गजल की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया !!!!!

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