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समाज के विषैले सत्य को उजागर करती कहानी के लिए बहुत बहुत बधाई आदरणीय योगराज जी | सादर
वाह्ह्ह चकित हूँ इतने कम शब्दों में आपने ,बेगैरती ,बेबसी ,बेबाकी को कितनी सुघड़ता से परिभाषित किया किन्तु सोचना ये है कि इस विषैले सत्य का जन्म क्यों और कहाँ से हुआ,बच्चा न होने पर किसी को नामर्द ,किसी को बाँझ आदि शब्दों के तीरों से घायल ये समाज ही करता है तब इन विषैले सत्यों की रूपरेखा तैयार होती है | बहुत शानदार लघु कथा आपके द्वारा लिखी बहुत दिनों बाद पढने को मिली बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय योगराज जी
समाज में प्राणियों को ऐसे विषैले सत्यों को जी जाने के लिए... इतना विवश बनाता कौन है?
मर्मस्थली को कचोटती सत्य प्रारूप को समक्ष करती सामाजिक लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय प्रधान सम्पादक महोदय.
सादर.
सटीक लघुतम कथा
.दंश का उपचार करता सचमुच विषैला सत्य..............
बधाई आदरणीय योगराज जी.
अन्तर में कई प्रश्न खड़े करके, निशब्द कर देती है आपकी लघुकथा, बहुत बहुत बधाई आदरणीय योगराज जी
वाह..... अत्यंत रोचक लघु कथा है आ0 योगराज जी......नि:शब्द हो गया हूँ...... परिस्थितियाँ जीवन में कैसे कैसे खेल दिखाती है..... कैसे कोई स्त्री इतना बड़ा कदम उठाने का दु:साहस कर सकती है..... जो समाज को पता चल जाए तो 'ग़लत' और न पता लगे तो 'ठीक' हो सकता है उनके निजी जीवन के लिए..... लेकिन क्या इस प्रकार का कृत्य उचित है..... आदि आदि अनेक प्रश्न इस ज़हन में उठने लगे हैं..... सुंदर एवं सार्थक लघु कथा है.....बहुत बहुत बधाई...
एक कड़वे सच को दूसरे कड़वे सच ने छुपा लिया। बधाई योगराज भाई।
आदरणीय योगराज सर शीर्षक विषैला सच हेतु ढेरों बधाई स्वीकारें जहाँ तक बात लघुकथा की है निःसंदेह एक बेहतरीन उत्तम लघुकथा है इसके आगे शब्द नहीं कुछ भी कहने के लिए समझने के लिए बहुत कुछ है. बेमिसाल लघुकथा हेतु बहुत बहुत बधाई स्वीकारें
आदरणीय योगराज सर , आपने " गागर मे सागर " कहावत को सच साबित कर दिया !!!! देखत मे छोटा लगे घाव करे गम्भीर , विषैला सच के लिये आपको ढेरों बधाई !!!!
आदरणीय योगराज सर, आपने महज 5-6 पंक्तियों में ही झकझोर के रख दिया, आपकी लघुकथाओं को पढ़ने के बाद ये अहसास होता है कि दरअस्ल लघुकथा क्या है, इस कामयाब रचना के लिये दिली मुबारक़बाद स्वीकार करेंl
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