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कहकशाँ में उठ रही लहरों की बातें क्या करें

कहकशाँ में उठ रही लहरों की बातें क्या करें

इस गुबारे-गर्द में सहरों की बातें क्या करें

 

हर कोई पहने मुखौटे फिर रहा है जब यहाँ

फिर बताओ हम भला चेहरों की बातें क्या करें

 

इस कदर मसरूफ हैं पाने को नाम औ शोहरतें

वक़्त इक पल का नहीं पहरों की बातें क्या करें

 

तुक मिलाने को समझ बैठा जो शाइर शाईरी

नासमझ से वजन औ बहरों की बातें क्या करें

 

नफरतें हैं वहशतें हैं दहशतें हैं राह में

हर घडी है गमजदा कहरों की बातें क्या करें

 

आँख का पानी हवा में उड़ गया है “दीप” तब

बैठ बंजर खेत में नहरों की बातें क्या करें

 

संदीप पटेल “दीप”

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 803

Comment

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Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 30, 2013 at 11:32am

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय अनुराग सैनी जी सादर

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 30, 2013 at 11:32am

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय शिज्जू जी सादर

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 30, 2013 at 11:32am

बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय राम भाई

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 30, 2013 at 11:31am

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय हेमंत जी सादर

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 30, 2013 at 11:31am

बहुत बहुत आभार आदरणीय गिरिराज भंडारी  जी सादर

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 30, 2013 at 11:30am

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सारथी जी सादर....स्नेह बनाये रखिये

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 30, 2013 at 11:30am

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय चंद्रशेखर जी सादर

Comment by vijay nikore on September 30, 2013 at 4:42am

लाजवाब गज़ल के लिए बधाई, आदरणीय संदीप जी।

 

सादर,

विजय निकोर

 

Comment by Meena Pathak on September 29, 2013 at 8:08am

इस कदर मसरूफ हैं पाने को नाम औ शोहरतें

वक़्त इक पल का नहीं पहरों की बातें क्या करें................बहुत खूब ... बहुत बहुत बधाई आप को 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 28, 2013 at 10:03am

हर कोई पहने मुखौटे फिर रहा है जब यहाँ

फिर बताओ हम भला चेहरों की बातें क्या करें......वाह! यह तो लाजवाब शेर है,

बेहद उम्दा गजल, तहे दिल से दाद कुबूल कीजिये आदरणीय संदीप जी

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